Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० जीवकाण्डे
तारिसपरिणामडिय - जीवा हु जिणेहि गलिदतिमिरेहिं । मोह सव्वकरण खवणुवसमणुज्जया भणिया ||५४ ||
आ
तादृशपरिणाम स्थित जीवाः खलु जिनैग्गं लिततिमिरै मोहस्यापूव्वं करणाः क्षपणोपशमनोद्यता भणिताः ॥ अंत पूर्वोत्तरसमये विलक्षणंगळप्पपूर्वकरणपरिणामंगळोल स्थित परिणत गळप्प ५ जीवंगळ अपूर्वकरण वितुं गलितज्ञानावरणादिकम्मतिमिररम्प जिनरुगलिंद पेळपट्टरु । अपूर्व्यं करणरनिबरु चरित्रमोहनीय कर्म्मद क्षपणोपशमनोद्युक्तरप्परु । अपूर्वकरणप्रथम समयं मोदगडु प्राक्तनावश्यकचतुष्टयं बेरसु गुणश्रेणिगुणसंक्रमस्थितिखंडनानुभागखं डनलक्षणावकचतुष्टयमं प्रवत्तिसुगुर्म बुदत्थं ॥
पियले सदि आऊ उवसमंति उवसमया ।
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खवयं दुक्के खवया नियमेण खवंति मोहं तु ॥ ५५ ॥
निचले नष्टे सत्यायुषि उपशमयत्युपशमकाः । क्षपकां ठौकमानाः क्षपकाः नियमेन क्षपयन्ति मोहं पुनः ॥ इल्लियपूर्वकरण गुणस्थानदोळु विद्यमानायुष्यं प्रथम भागदोलु निद्रा
तादृशेषु पूर्वोत्तरसमयविलक्षणेषु अपूर्वकरणपरिणामेषु स्थिताः परिणता जीवा अपूर्वकरणा इति गलितज्ञानावरण। दिकर्म तिमिरैजिनैर्भणिताः । ते च अपूर्वकरणाः सर्वेऽपि प्रथमसमयमादि कृत्वा चारित्रमोहनीयकर्मणः क्षपणोपशमनोद्युक्ता भवन्ति गुणश्रेणिगुणसंक्रमणस्थितिखण्डानुभागखण्डनलक्षणानि चत्वार्यावश्यकानि कुर्वन्तीत्यर्थः ॥ ५४ ॥
१५
अत्र अपूर्वकरणगुणस्थाने विद्यमानायुष्कस्य प्रथमभागे निद्राप्रचलाद्वये बन्धतो व्युच्छिन्ने सति उपशम
पूर्व समय और उत्तर समय में इस प्रकार विलक्षणताको लिये हुए अपूर्वकरण परि णामों में स्थित अर्थात् उन परिणाम रूप परिणत जीवोंको, जिनका ज्ञानावरणादि रूप अन्धकार २० दूर हो गया है उन जिन भगवान्ने अपूर्वकरण कहा है। वे सभी अपूर्वकरण जीव प्रथम समयसे ही चारित्र मोहनीय कर्मको क्षय करनेमें या उसका उपशम करने पर तत्पर होते हैं । अर्थात् गुणश्रेणी निर्जरा, गुणसंक्रमण, स्थितिखण्डन, अनुभागखण्डन रूप चार आवश्यकों को करते हैं ॥५४॥
विशेषार्थ – पहले बाँधे हुए सत्ता रूप कर्म परमाणु द्रव्यमें से जो द्रव्य गुणश्रेणिमें २५ दिया, उसकी गुणश्रेणिके कालमें प्रति समय असंख्यात गुणा अनुक्रम लिये जो पंक्तिबद्ध निर्जरा होती है,वह गुणश्रेणिनिर्जरा है । प्रतिसमय गुणकारके अनुक्रमसे विवक्षित प्रकृति के परमाणु अन्य प्रकृति रूप परिणमन करे, वह गुण संक्रमण है । पूर्वबद्ध सत्तारूप कर्मप्रकृतियोंकी स्थिति को घटाना स्थितिखण्डन है । पूर्वबद्ध सत्तारूप अप्रशस्त कर्म प्रकृतियों के अनुभागको घटाना सो अनुभाग खण्डन है। ये चार कार्य अपूर्वकरण में अवश्य होते हैं ॥ ५४ ॥
३०
इस अपूर्वकरण गुणस्थानके प्रथम भाग में निद्रा और प्रचला इन दो प्रकृतियोंके बन्धकी व्युच्छित्ति मनुष्य आयुके विद्यमान होते होती है । अर्थात् उपशम श्रेणि पर आरोहण करनेवाले अपूर्वकरण जीवका प्रथम भागमें मरण नहीं होता, ऐसा आगम है । इस तरह यदि वे अपूर्वकरण गुणस्थानवर्ती मनुष्य उपशम श्रेणि पर आरोहण करते हैं, तब नियमसे
१. २. तरप । ३. म मोहनीयं ।
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