Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
View full book text
________________
कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका सम्मत्तरयणपव्वयसिहरादो मिच्छभूमिसमहिमुहो ।
णासियसम्मत्तो सो सासणणामो मुणेयव्वो ॥२०॥ सम्यक्त्वरत्नपर्वतशिखरान्मिथ्यात्वभूमिसमभिमुखः। नाशितसम्यक्त्वः स सासादननामा मन्तव्यः॥
सम्यक्त्वपरिणामम ब रत्नपवंतद शिखरदत्तणिदं मिथ्यात्वपरिणामम ब भूम्यभिमुखनें- ५ नेवरमंतराळकालदोळु एकसमयमादियागि षडावलिकालपर्यंतं वत्तिसुगुमावुदोंदु जीवमाजीवं। विनाशितसम्यक्त्वनप्प सासादननामाभिधेयने दरियल्पडुगुं ॥ तदनंतरं सम्यग्मिथ्यादृष्टिगुणस्थानस्वरूपनिरूपणार्थमागि गाथाचतुष्टयमं पेळ्दपरु ।
सम्मामिच्छुदएण य उत्तंतरसव्वघादिकज्जेण ।
ण य सम्म मिच्छ पि य सम्मिस्सो होदि परिणामो ॥२१॥ सम्यग्मिथ्यात्वोदयेन च जात्यन्तरसर्वघातिकार्येण । न च सम्यक्त्वं मिथ्यात्वमपि च संमिश्रो भवति परिणामः ॥ जात्यंतरसर्वघातिकार्यमप्प सम्यग्मिथ्यात्वप्रकृत्युददिदं जीवक्के
यो जीवः सम्यक्त्वपरिणामरूपरत्नशिखरात् मिथ्यात्वपरिणामरूपभूम्यभिमुखः सन् यावदन्तरालकाले एक समयात् षडावलिकालपर्यन्ते वर्तते स जीवो विनाशितसम्यक्त्वः सासादननामा ज्ञातव्यः ॥२०॥ अथ सम्यग्मिथ्यादृष्टिगुणस्थानस्वरूपं गाथाचतुष्टयेनाह
जात्यन्तरसर्वघातिकार्यरूपसम्यग्मिथ्यात्वप्रकृत्युदयन जीवस्य युगपत्सम्यक्त्वमिथ्यात्वशवलितरूपपरिणामो भवति तेन सम्यग्मिथ्यात्वप्रकृत्युदयेन मिथ्यात्वकर्मोदयवन केवलं मिथ्यात्वपरिणामो भवति । नापि सम्यक्त्व
जो जीव सम्यक्त्व परिणामरूप रत्नपर्वतके शिखरसे मिथ्यात्व परिणामरूपी भूमिके सम्मुख होता हुआ मध्यके कालमें जो एक समयसे छह आवलि पर्यन्त है, रहता है, वह जीव सम्यक्त्वके नष्ट हो जानेसे सासादन होता है। अर्थात् पर्वतसे गिरा व्यक्ति भूमिमें आनेसे २० पहले गिरता हुआ कुछ समय अन्तरालमें रहता है । वैसे ही जो सम्यक्त्वके नष्ट होनेपर मिथ्यात्व रूप भूमिको प्राप्त न करके छह आवलिमात्र अन्तराल कालमें रहता है, वह सासादन सम्यग्दृष्टि है ॥२०॥
जात्यन्तर सर्वघातिके कार्यरूप सम्यग्मिध्यात्व प्रकृतिके उदयसे जीवके एक साथ सम्यक्त्व और मिथ्यात्वरूप मिला-जुला परिणाम होता है,अतः सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृतिके २५ उदयसे मिथ्यात्व कमके उदयकी तरह न केवल मिथ्यात्व परिणाम होता है और न सम्यक्त्व प्रकृतिके उदयकी तरह सम्यक्त्व-परिणाम होता है। इस कारणसे उस सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृतिका कार्य जुदी ही जातिरूप सम्यग्मिथ्यात्व रूप मिला हुआ परिणाम होता है ।।२१।।
बन्धीका उदय होनेपर छह आवलिरूप थोड़ेसे कालका व्यवधान होनेपर भी मिथ्यात्वकर्मके उदयाभिमुख होनेपर ही सम्यग्दर्शनका विनाश होता है। शंका-यदि ऐसा है तो अनन्तानुबन्धीके उदयसे सम्यक्त्वका नाश ३० क्यों कहा है ? समाषान-मिथ्यात्वके उदयाभिमुख होनेके निकटवर्ती अनन्तानुबन्धीके उदयसे सम्यग्दर्शनके विनाशकी सम्भावना होनेसे ऐसा कहा है। अधिक क्या अनन्तानुबन्धी में सम्यग्दर्शनके विनाशकी शक्ति होनेपर भी मिथ्यात्वके उदयाभिमुख होनेपर ही उस शक्तिकी व्यक्ति होती है। सासादनमें अतत्त्व श्रद्धान अव्यक्त होता है और मिथ्यात्व में व्यक्त होता है। १. म समभिमुहो । २. म वलिकेका । ३. मदनाभि । ४. म जच्चतर ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org