Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukanraj S Porwal

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Page 15
________________ [ 10 ] इस लेख से स्पष्ट मालुम हो गया होगा। ज्यादा खुलासा आगे करेंगे। इस पर श्री शीलाङ्काच यकृत टीका में विस्तार किया है । परन्तु पुस्तक बढ़ जाने के भय से वह यहां नहीं लिखा है । विद्वानों के लिए इतना ही प्रमाण काफी है। अगर किसी को देखना हो तो सूत्र देखकर समाधान कर लें। सूयगडांग सूत्र श्रुतस्कन्ध 2 अध्ययन 6 में भी ;दूजे सूयगडांगे छ? अध्ययने, आर्द्र नाम कुमारजी। प्रतिमा देखो ज्ञान ऊपनो, पाम्यो भवनो पारजी ॥प्र! अर्थ - प्रार्द्रकुमार को भी प्रादिनाथ प्रभु की शांत मुद्रा वाली प्रतिमा देखकर जाति स्मरण ज्ञान हुआ था। इस बारे में देखिए निम्नोक्त शोलाङ्काचार्य कृत टीकाअन्यवाऽस्या कपिता राजगहे नगरे श्रेणिकस्य राजः स्नेहाविष्करणार्थ परमप्राभृतोपेतं महत्तमं प्रेषयति, आर्द्रककुमारेणासौ पृष्टो यथा-कस्यैतानि महाण्यित्युग्राणि प्राभृतानि मत्पित्रा प्रेषितानि यास्यन्तीति, असावकथयद् - यथा आर्यदेशे तव पितः परममित्रं श्रेणिको महाराजः तस्यतानीति, आर्द्र ककुमारेणाप्यभाणि - कि तस्यास्ति कश्चिद्योग्यः पुत्रः ? अस्तीत्याह, यद्येवं मत्प्र. हितानि प्राभृतानि भवता तस्य समर्पणीयानीति भणित्वा महार्हाणि प्राभृतानि समाभिहित-वक्तण्योऽसौमद्वच नाद यथाऽऽद्रककुमारस्त्वयि नितरां स्निहयतोति, स च मह

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