Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukanraj S Porwal

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Page 67
________________ [ 62 ] की निन्दा करने को ही [चैत्य शब्द का अर्थ प्रतिमा करते हो और प्रतिमा का अधिकार ज्ञान साधु करते हैं तो जैसे चोर कोतवाल को दण्ड दे । वाह कलयुग तेरी लीला ! प्रिय ! लोक कहते हैं कि इन लोगों के पांच ज्ञानावरणीय तीन दर्शन मोहनीय यह पाठ पाटा द्रव्यतो मुह बन्धा है और भाव आंख (चक्षु) पर बन्धा है । परन्तु ( ए. पी.) को इतने से सन्तोष नहीं हुवा तब प्रश्न० अ० 10 का पाठ अनुसार एक पाठ [ चक्षु पर बन्धाने की उद्घोषणा करी है उक्न पाठ में तो घर हाट तोरण दरवाजा आदि बहुत वस्तु देखने की मना है । यदि जब [स्थानकवासी ) खुली अांखों फिरेगे तो उक्त वस्तु दीख पड़ेगी, इसी से एक पट्टी आंख पर बांधने की अवश्य जरूरत है। (प्रश्न ) क्यों जी ! आप उक्त दो पाठ में (चेईय) शब्द का क्या अर्थ करते हो? (उत्तर) प्रिय ! हमारे तो जो पूर्व आचार्य कर गये हैं वही अर्थ है । इन लोगों की तरह नया नया अर्थ नहीं करते हैं । लो सुनो ! उक्त सूत्र में 3 ठिकाने । चेईय ] शब्द है उसका पूर्वाचार्य ने [प्रतिमा) हो अर्थ किया है [1] चैत्य वृक्ष । [1] प्रश्न० प्र० 1 आश्रवद्वार में (चे ईय) प्रतिमा है । परन्तु वह प्रतिमा किसकी है ? कराने वाला कौन है ? जिसका अधिकार सुन ! प्रथम आश्रवद्वार है हिंसा । जिसके भेद 5 हिंसा (1) हिंसा का नाम ( 2 ) हिंसा करने का कारण ( 3 ) हिंसा करने वाला (4) हिंसा का फल (5) प्रथम हिंसा ।

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