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यत् तत्तो य पुरिमेताले बग्गुरइसाण अच्चए पडिम, मल्लिजिणा ययणपडिमा अन्ताएवंसि बहुगोट्टी।
इसका मतलब यह है कि पुरिमताल नगर में वग्गूर श्रावक ने मल्लिनाथ भगवान का मन्दिर बनवा के सपरिवार जिनप्रतिमा का पूजन किया।
इनके सिबाय भी जैन सिद्धान्तों में मूति का अधिकार बहुत है । मगर इन लोगों में 92 सूत्र मान रखा है जिस से 32 सूत्र का ही प्रमाण दिया है । ज्यादा देखना हो तो महानिशीथ आदि सूत्र में देखो।
(प्रश्न) अजी ! महानिशीथ तथा संदेहदोलावली, संघ पट्टक में तो मन्दिर मूर्ति का निषेध किया सुनते हैं।
( उत्तर ) प्रिय ! किसी गुरुगम से उक्त शास्त्र पढो । उनमें तो मन्दिर मति की स्थापना है । उक्त ग्रन्थकर्ता जैन आचार्य महाप्रभाविक श्री जिनवल्लभसूरि तथा जिन दत्त सूरिजी हुए हैं । उक्त ग्रन्थ में अविधिचैन्य * और साधु माल आरोप करने तथा चैत्य से साधू का आजीविका करने का निषेध है । उन्हीं महात्माओं के हस्तकमल से प्रतिष्ठा कराये अनेक शिखरबन्ध मन्दिर हैं । वो मारवाड मेवाड गुजरातादि में मौजद हैं। और महानिशीथ का नाम तुम लेते हो तो फरमाओ ! महानिशीथ सूत्र किस ने फरमाया है । * अविधिचैत्य-जैसे मान ममता आजीविका आदिके वास्ते करावे।