Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukanraj S Porwal

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Page 104
________________ ( 99 ) यत-आयारे णं परित्ता वायणा संखिज्जा अणुयोगदारा संखिज्जा वेढा संखिज्जा सिलोगा संखिज्जाओ निज्जत्तिओं संखिज्जामओ परिवत्तिओ संघयणीओ इत्यादि । ए आचारंग सूत्र की नियुक्ति संख्याती कहीं है। इसी तरह 12 अंगकी नियुक्ति मल पाठ में है। शतकपचवीस उद्देसो तीजो। भगवती अंग पिछाणजी। सूत्र अर्थ नियुक्तिमानों। या जिनवरकी आण जी॥प्र.27 अर्थ-मूत्र भगवती शतक 25 उ० 3 मूल पाठयत्-सुत्तत्थो खलु पढमो । बोओ गिज्जुत्तिमीसिनो भणिओ तइओ य निरवसेसो । एस विहि होइ अणुयोगे ॥1॥ अर्थ-पहली सूत्र अर्थ दूजी नियुक्ति के साथ कहना तीजी निरवशेष । इसीमें टीकाचणि भाष्य का समावेश होता है। जनुयोगद्वार सूत्र में देखो। नियुक्ति की बात जी । नंदी में नियुक्ति मानी । छोडो हठमिथ्यात्व जी॥ प्र.28 अर्थ-अणुयोगद्वार सूत्र में नियुक्ति यत् ( सुत्तागमे निज्जुत्ति अणुगमे य ) मतलब-सूत्र और नियुक्ति दोनों माननी कहा है । आग नंदी सूत्र सुनो - सुत्तत्थो खलु पढमो बीओ। निजत्तिमीसिओ भणिओ। तइओ य निरवसेसो । एस विहि होइ अणुओगे ।। 1 ॥

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