Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukanraj S Porwal

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Page 106
________________ ( 101 ) प्रिय ! जैसा 32 सूत्र पूर्वाचार्यों ने पुस्तकारूढ किया है वैसे ही बाकी सूत्र पंचांगी पुस्तकारूढ करी है । जो पंचांगी नई रची कहो तो 32 सूत्र भी नया रचा हुवा मानना पडेगा । नियुक्ति आदि में नई गाथा मिला दी तो मूल 32 सूत्र में नई गाथा मिलाने में उनकी कलम पकड़ने वाला कौन था ? देखो, उन प्राचार्य महाराज का वचन, जिस जगह जो बोल विसर्जन था । उस जगह कह दिया कि तप्वं केवली गम्यं । प्रिय ! केबल कदाग्रहवश हो के कहोगे कि हम तो प्राचार्य की रची पंचांगी नहीं मानें। तो आगे सुनो V तोन छेद भद्रबाहु रचिया । पनवणा श्यामाचार जी । दशवैका लिक सिज्जंभवकृत, निशीथ विसाख गणधार जी । प्र. 31 देवड्डिगणी जो नन्दी बनाई । घणा सूत्र का नामजी । ज्यों वृत्ति का कर्त्ता जाणो । भद्रबाहु स्वाम जी ।।प्र.3.2 --- अर्थ - श्री भद्रबाहु स्वामी प्रावारांगादि 11 सूत्र की नियुक्ति और 3 छेद सूत्र ( कल्प व्यवहार दशाश्रुतस्कंध ) बनाया है और 23 वें पाट श्यामाचार्य ने पनवणा सूत्र बनाया हैऔर श्रीशयंभवसूरि दशवेकालिक बनाई । श्री वेशाखागणी लघुनि -- शीथ वनाई | श्रीदेवधिगणी नन्दी बनाई। जिसमें 73 सूत्र 14000 पन्ना मानना कहा है । इस जगह 10 मिनट आंख मींच के सोचो कि भद्रबाहु स्वामी का 3 सूत्र मानना और 10 नहीं मानना । दूसरा 23 वीं पटा के 27वें पाठ के आचार्य काबनाया मानना और भद्रबाहु -

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