Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukanraj S Porwal

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Page 111
________________ ( 106 ) सवैया ॥ प्रतिमा छत्तीसी मैं रचो, बत्तीस सूत्र को साख । जैसे गणधर भाषिया, तैसा दिया मैं दाख ॥1॥ वृथा खंडन, तेहनो, नकल निरूपण नाम । दूजो 'ए.पो.' ने कियो, जिन आज्ञा विरुद्ध काम ॥2॥ गलीच भाषो गालीयां, नहीं न्याय लवलेश । कहलो फैलायो जैनमें, जाने कोरट केस ।। 3 ।। दोनों पर दया करो, विलास बणायो सार । पक्षपात दूरे करी, वांचे नर और नार ॥ 4 ॥ छपतो लिखतो देखतो, अशुद्धि रही हो कोय । न्यूनाधिक परमाद से, मिच्छामि दुक्खडं मोय ॥5॥ उगणोसे बहुत्तरे, माघ मास सुदी जान । तोखो तिथि तोजकी, आदितवार व्याख्यान ॥ 6 ॥ चरम तीर्थकर बोर को, तोर्थ ओसोया जान । गयवरचन्द शरणी लियो, पाम्या जन्म परमाण 17॥ इति मुनि श्रीगयवरचंदजी विरचित गयवर विलासः सम्पूर्णः। -

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