Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukanraj S Porwal

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Page 105
________________ ( 100 ) अर्थ- पूर्व में लिख आये हैं प्रिय ! इतना मूल सूत्र के प्रमाख को नहीं मान के मिथ्या ( झूठ ) हठ करना क्या विद्वानों का काम है ? आत्म कल्याण चाहते हो तो इस झूठे कदाग्रह को छोड़ दो। वीर प्रभु के वचनों पर, आस्था रक्खो। वादी कहे वा तो नियुक्ति। गई काल में वीत जी । नवी रचीमापारिज। ज्यारि किम आवे परतीतजी॥प्र.29 अर्थ-मूल सूत्र में बोलने को जगह न मिली तब कितने गाडरी प्रवाह लोगों को भ्रम में डालते हैं कि सूत्र में कही वो पंचांगी इस काल में विघ्छेद हो गई और अभी जो है वो आचार्यों ने नई रची है। उनको क्या परतोत? मन्दिर प्रतिमा का अधिकार पीछे से मिला दिया होगा। सूत्र रह्या नियुक्ति वीती, या थे किम करी जाणी जी । आचारिज रचिया नहि.मानों, सुणजो आगे वाणी जी। प्रतिमा० ॥ 30॥ अर्थ-यह आप का कहना तद्दन मिथ्या है । लो ! जो पंचांगी इस काल में विच्छेद हो गई तो फिर 32 सूत्र किस तरह से रहे ? या फिर क्या लुकाजी के पढ़ने के वास्ते ही 32 सूत्र की रक्षा करी और किसी सूत्रों की नहीं करी । जो उधई आदि खा गया कहते हो तो क्या आप जैसे उन जानवरों को ज्ञान था सो 32 सूत्र तो रख दिये और सब खा गये । क्या आप लोगों की विद्वत्ता का परचा है ! कहां तक तारीफ करें !

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