Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukanraj S Porwal

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Page 99
________________ ( 94 ) यह मूल सूत्र में मन्दिर प्रतिमा पूजा का अधिकार है ।इति।23 __ आवश्यक महिमा शब्द विचारो। भरत श्रेणिक भराव्या बिबजी। वग्गुर श्रावक पुरिमताल को । केइ चैत्य कराव्या थूभजी ॥प्र. 24 ।। ___ अर्थ - उक्त सूत्र लोगस्स में (कित्तिय वंदिय महिथा ) जिस में कीति वन्दना ये दो शब्द भाव पूजावाची हैं और (महिया) शब्द द्रव्य पूजाबाची है । टीका में भी ऐसा ही अर्थ किया है। आगे भरतचक्रिका अधिकार सुनोयत-थभसय माउआणं । चउवीस चैव जिणघरे कासी। सम्वजिणाणं पडिमा वण्णेणं । पमाणेहि नियहिं । 236। अर्थ-- भरतचऋत्तिने अपने सौ भाइयों के सौ स्तूप बनवाए और चोवीस तीर्थंकरों के मन्दिर तथा उनके अन्दर वर्ण तथा प्रमाण करके युक्त उनकी प्रतिमायें ( अष्टापद पर ) बनवाई और सुनो ... यत-अकसिणपवत्तगाणं विरया विरयाणंएस खलु जुत्तो । ... संसारपयणुकरणो दव्वत्थए कूदिद्वन्तो ।।6।। मतलब द्रव्य पूजा से संसार पतला करे याने क्षय करे,श्रावक। कूप दृष्टांत । श्री योगशास्त्र आदि में श्रेणिक राजा ने मन्दिर बनाया और 108 सोने के जव * से हमेशा जिन प्रतिमा आगे साथीयो करता और पूजा का अधिकार पीछे लिख आये हैं । आगे बग्गुर श्रावक का अधिकार सुनो - * स्था०मेतारजमुनि की ढाल में गाते हैं कि राजा श्रेणिक 108जव कराते थे। तब प्रतिमा को कोउं नहीं मानते ?अवश्य मानना चाहिए। - -

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