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( पूर्वपक्ष ) महानिशीथ अ० 5 में गौतम स्वामी को श्री वीर ने फरमाया है ।
प्रभु
(उत्तर) प्रिय ! यह बात आपको मजूर है कि महानिशीथ वीर प्रभु ने फरमाया है। तो लो सुनो
( 1 ) अध्ययन 2 में अष्ट प्रकार से पूजा करनी कही है । ( 2 ) अध्ययन 3 में मन्दिर बनाने वाला - 2 वें देवलोक में
जावे ।
( 3 ) अध्ययन 4 में संसार पातला करे इत्यादि । ज्यादा देखना होवे तो महानिशीथ सूत्र मूल पाठ में देख लेना चाहिए |
विचारों ! क्या तीर्थंकरों के वचन ऐसे परस्पर विरुद्ध होते हैं कि अo2-3-4 में तो मूर्ति मन्दिर कह दिए और पांचवें अध्ययन में निषेध कर देवे ( वाह ! ) पिण आपने तो जैन सिद्धान्त को कुरान पुरान बना दिए !
शायद आप कह दोगे कि हम ऊपर लिखे अध्ययन नहीं मानते । तो आप की अज्ञानता विद्वानों से छिपी नहीं रहेगी, कि 2 3-4 अध्ययन तो नहीं मानना और 5 वां अध्ययन मानना ।
प्रिय ! पांचवां अध्ययन में ही स्पष्ट मन्दिर मूर्ति सिद्ध है । परन्तु आपके जैसे आदमी को (पीलिया) हो जा वे जब सफेद बस्तु पोली दीखे उस में आदमी का दोष नहीं. नहीं है । पोलिये का ही दोष है ऐसे ही आप को असत्य अज्ञान का पीलिया हो रहा है। जिससे 5 वें अध्ययन में मन्दिर मूर्ति सिद्ध है तो पिण आप को निषेध मालूम होता है। इसी में और
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