Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukanraj S Porwal

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Page 97
________________ ( 92 ) की प्यारे ! अब सोचो ज्ञान ज्यादा किस में है ? राम सेन्या तरह. केवल राम 2 से ही सिद्धि नहीं है । जरा मतलब भी समझो । जिस से कल्याण हो । पूजा विषय गाथा 12 मो के अर्थ में लिख आये हैं । इति । थूभ का श्रीनन्दी सूत्रे । मुनिसुव्रत विशाला मांय जो । व्यवहारसूत्रे आलोयण लेवे। मुनि प्रतिमापासे जायजी प्र. 221 अर्थ - नन्दी सूत्र मूल (शुभ) विशाला नगरी में श्री मुनिसुव्रत भगवान का शुभ के प्रभाव से नगरी का बचाव हुआ । यह बात स्थानकवासियों में प्रसिद्ध है । व्यवहार सूत्र उदसा 1 में आलोवणा अधिकार में जो साधु के प्रायश्चित लागे तो आचार्य, उपाध्याय, बहुश्रुति, घणा आगम का जाण पासे आलोवे 1 कदाचित् आ० उ० नहीं होवे तो संभोगी साधु पासे आलोवे 2 कदाचित् संभोगी नहीं हो तो अन्य संभोगीं पासे अलोवे | कदाचित् अन्य सभोगी न होवे तो रूपसाधु कने आलोवे 4 रूपसाधु नहीं हो तो पच्छाकडा श्रावक पासे आलोवे 5 छाकडा श्रावक नहीं हो तो - यत् जत्थेव सम्मं भावियाई तेइयाई पासेज्जा कप्पेइ से तस्संतिए आलोइलए वा । अर्थ- सम्यक् भावित एटले सुविहित प्रतिष्ठित जिन प्रतिमा । (चैत्य जिनौकस्तब्दियमिति वचनात ऐसी प्रतिमा देवे कल्पे तेहनी पासे आलोचज़ ! यह सूत्रार्थ में खुलासा- "जिन प्रतिमा पासे आलोयणा लेवे ।' ( प्रश्न ) क्या प्रतिमा जो प्रायश्चित दे सकती है ?

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