Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukanraj S Porwal

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Page 95
________________ ( 90 ) जैसे तीर्थंकरों के जन्म समय में इन्द्रादिक वन्दन पूजन करे 1 [ आगे निक्षेपे सुनो-] जत्थयजं जाणेज्जा निवखेवं निक्खेवे निरवसेसं । जत्थ विय न जाणेज्जा । चउक्कथं निविखवे तत्थ ||1| अर्थ - जहां जिस वस्तु में जितने निक्षेपे जाने. वहां उस वस्तु में उतने निक्षेपे करें और जिस वस्तु में अधिक निक्षेपे नहीं जान सके तो उस वस्तु में चार निक्षेपे तो अवश्य करे । ॥ श्री अहंतों के 4 निक्षेपा ॥ (1) अर्हतों का नाम लेना सो नाम निक्षेपा । ( 2 ) अर्हतों की प्रतिमा थापनी सो स्थापना निक्षेपा । (3) अर्हतों का अतीत मनागत काल सो द्रव्य निक्षेपा । ( 4 ) अर्हतों के 34 अतिशय आदि समोसरणवत् सो भाव निक्षेपा । इस तरह सब वस्तु में समझना । इसमें हमारे स्थानक - बासी भाई नाम निक्षेप को वन्दनीक मानते हैं और स्थापना निक्षेप को मानते हैं । परन्तु दीर्घ दृष्टि से विचार तो करें स्थापना में नाम मिले है । नाम से स्थापना में गुण की वृद्धि ज्यादा है । जैसे

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