Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukanraj S Porwal

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Page 84
________________ ( 79 ) प्रकाशपत्र तारीख 3 दिसम्बर 15 अंक 10-11-12-13-15 में लिखा था । उस लेख को समीक्षा हमने इस पुस्तक में लिख दिया है। पाठकों ने भी भली भांति पढ़ लिया होगा । आगे का लेख हमको नहीं मिला। जिस से जो प्रतिमाछत्तीसो में कहे हुवे सूत्र पाठसे सिद्धकर बतलायेंगे । शायद 'ए. पी.' मायावृत्ति से लेख बन्ध कर पुस्तक रूपे छपावेंगे तो पाठकों को हम सूचना करते हैं कि उनकी समक्षा से हमारी सिद्ध प्रतिमा मु० देख लेनी चाहिये और हमारे को जो उनको पुस्तक मिलेगी तो हम दूसरी आवृत्ति में श्रागम अनुसार उत्तर दे के इस पुस्तक में और बढ़ा देवेंगे । प्रिय पाठको ! इतना तो स्मरण में रखना कि श्रीत्रिलोकीनाथ ने ठाम 2 स्थापना मूर्ति 'जिनप्रतिमा' कही है। तो क्या 32 सूत्रों से कोई निषेध कर सकेगा ? हर किसी विद्वान् स्थानकवासी से पूछ लो तो अवश्य कहेगा कि सूत्र में जिन प्रतिमा चली है । तो फिर 'ए पी.' 32 सूत्र में जिन प्रतिमा का खण्डन किस से करेगा ? क्या उनकी स्वकपोल कल्पित बातें कोई विद्वान मानेगा ? अपितु कभी नहीं। जो स्वयं वीर पुत्र है सो तो वीर वचनों पर ही दृढ विश्वास रखेगा। उन्हीं का कार्य सिद्ध होगा | 13 || 1 3 प्रथम तीर्थंकर मोक्षसिधाया । धूभ कराया तोन जी ॥ • जंबूद्वीपपन्नत्ति देखो। सुर होय भक्ति में लीन जी। प्रतिमा. 14 जंभकदेवता प्रतिमापूजी । शाश्वतासिद्धायतन बहुजाणजो । चंदपन्नति सूर्यपन्नति । प्रतिमा कही विमानजी । प्रतिमा. 1151 अर्थ- सूत्र जंबुद्वीपपन्नति भगवान ऋषभदेव मोक्ष पधारे

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