Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukanraj S Porwal

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Page 87
________________ [ 82 ] वर्ग दसोईदेवीयां । प्रतिमापूजी बहुमानजी । प्रतिमा० १७॥ पांचवेंवर्गे द्वारकानगरी । बारे श्रावक की जोडजी । चपानी परे नगरी शोभे। श्रीदक पूजी होडाहोडजी प्रतिमा १८। अर्थ- निरयावलि का सूत्र के पंच वर्ग हैं । जिसमें चंपा राजगही शब्द से बनारखी द्वारका आदि नगरियों में चंपा की भोलावण है । सो उववाई में (बहुला बरिहत चेइया) पाठ से नगरियों में मन्दिर पीछे लिख आये हैं और चन्द्रमा सूर्य शुक्र बहुपुत्तिया सिरी हिरी धति कृती आदि देव देवियों ने सूर्याभ की तरे 17 प्रकार को जिन प्रतिमा की पूजा करी है। __ और निसढादी 12 आनन्द श्रावक की तरे प्रतिमा पूजी है । पाठ[ण्हाया कयबलीकम्मा] इसीसे यहाँ ज्यादा विस्तार नहीं किया है। दसमे अध्ययने गौतम स्वामी, तीर्थ अष्टापद जायजी। उत्तराध्ययन अट्ठारमे देखो, कह्यो उदाइरायजी ।प्र.१६। अर्थ-उत्तराध्ययन सूत्र दशमा प्र० दुमपत्तए पंडयए जहा निवडइ रायगणाण अच्चए । एवं मणुयाण जीवियं, समयं गोयम मा पमायए ॥ १॥ इस गाथा में 14. पूर्वका धणी सदा अप्रमत्त संजमधारी गौतम स्वामी को श्री वीर प्रभुने उपदेश किया है। (समयं गोयम ! मा पमायए । इस उपदेश का प्राशय अति गंभीर है ।

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