Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukanraj S Porwal

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Page 92
________________ [ 87 ] = त्रिकालं सा पवित्रा पूजयति । अन्यद प्रभावती राज्ञो तत्प्रतिमायाः पुरो नृत्यति, राजा च वीणां वादयति । भाव थं विद्यन्माली देवता ने चलहेमवन्त पर्वत से गौशीर्षचन्दन लाय के श्रीवीर प्रभु को प्रतिमा बनाई एक मजसे में रखके वीतभयपाटण भेजी। बहुत अन्यमति लोक अपना देवकुं - उदेशी मंजूषा को खोले पिण खले नहीं । तदा उदाइ राजा की राणी चेडा राजा की पुत्री महासती प्रभावती राणी ने देवाधिदेव को उदृशी के मजसे को खोली। श्रीवीर प्रभुको प्रतिमा ले अपने अन्तेपुर ( घर ) के मंदिर में स्थापना करी । त्रिकाल अष्ट प्रकार की पूजा करती थी । एक समय प्रभावती रानी जिन भक्ति में अति उत्साहित होके जिन प्रतिमा के आगे नाटक करती हुई । राजा उदाइ बीणा बजा रहे थे इत्यादि । इस विषय में प्रिय ! भद्रबाहु स्वामी 4 पूर्वधारी ने आवश्यक सूत्र नियुक्ति में कहा है - यत् (अंतेउ रचेइयहर कारियं प्रभावती व्हाता तिसंज् अच्चे अक्षया देवी बच्चई राया वोणं वायेइ ) भावार्थ प्रभावती रानी ने अपने महल के अन्दर जिन मंदिर बनवाया प्रभावती रानी स्नान करके त्रिकाल जिन प्रतिमा का पूजन करती है । एक समय रानी नृत्य पूजा कर रही है और राजा वीमा को बजा रहा है । * उस प्रतिमा की प्रतिष्ठा कपिल केवली ने कीनी है ।

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