Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukanraj S Porwal

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Page 90
________________ [ 85 (प्रतिमा) वंदु ?'' तब भगवान रजा दिवि ! पाठ-(समयं गोयम मा पमायए ) गौतम समयमात्र भी प्रमाद मत करो। भगवान की आज्ञा से गौतम स्वामी अष्टापद तीर्थ ऊपर पधारे व भरतचक्रवर्ती के भराए वे 24 तीर्थंकरों के वर्ण शरीर प्रमाण की जिनप्रतिमा को वन्दी । जगचितामणि आदि चैत्यवदन किया। पीछे पधारे तो 1503 तापसों को प्रतिबोध दिया इत्यादि बहुत विस्तार है। इसका अर्थ तो स्थानकवासी भी प्रतिमा ही करते हैं । ( प्रश्न । भरतचक्री को असंख्याकाल हुवा और भगवती . श० 8 उ० 9 में कृत्रिम वस्तु की संख्याता कालकी स्थिति कही है । तो भरत भराया (बिंब) कैसे सिद्ध होवे ? ( उत्तर ) प्रिय ! भगवती में स्थिति कही सो स्वाभाविक वस्तु की है और ( प्रतिमा) रही सो देव सहायता से रही है। जैसे जम्बूद्वोप पन्नत्ति सूत्र मूलपाठ में पहिले आरे का वर्णन वापी पोषरणी आदि कही है । तो विचारो ! शाश्वती तो सूत्र में चनी नहीं । 9 कोडा कोड सागर तक कम भूमि मनुष्य था नहीं तो बतलावो ! वो वापी आदि किसने कराइ ? जैसे वापी आदि :: देवताओं की सहायता से रही। वैसे हा. भरत भराया बिब . ( प्रति मा) रही । यह बात निःशंक है। . आचारांग सूत्र में तीर्थ यात्रा कही है और जंघाचारण : विद्याचारण मुनि ने तीर्थ यात्रा करी है । अब भी गौतमस्वामी के परंपरा वाले मुनि तीर्थयात्रा कर रहे हैं । जैसा सूत्र में था वैसा प्रतिमा छत्तोसी में लिखा । आगे इसी सूत्र का अ० 18 में उदाइ राजा हुवा सो ध्यान दे के सुनो ।।191

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