Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukanraj S Porwal

Previous | Next

Page 91
________________ [ 86 ] प्रभावती राणी नाटक कियो, जिन भक्ति में रागजी । गणतीस अध्ययने चैत्यवंदनको फल भाग्यो वीतरागजी प्र.२०॥ अर्थ-उत्त० अ० 181 सोवीर रायवसभो, चेच्चा रज्जं मणि चरे। उदायणो पम्वइओ, पत्तो गइमणुत्तरं ॥४८॥ प्रिय ! उदाइ राजा का विस्तार से वर्णन सूत्र में है । तथापि मैं प्रभावती राणी ने जिन प्रतिमा आगे भक्ति में लीन होके नाटक किया है वो लिखता । ज्यादा देखना हो तो सूत्र मेरे पास मौजूद है। देख लो यत-तत्रोदायनराज पट्टराज्ञो चेटकराजा पुत्री प्रभावती नामनी श्रमणोपासिका तत्रायाता, सा तस्या मंजषायाः पूजां कृत्वा एवं भणति गयराग दोसमोहो, सम्वन्न अडपडिहेर संजुत्तो, देवाधिदेव गरुमो अइरा मे दंसणं देउ १ एवं उक्त्वा तया मंजूषाया हस्तेन परशुप्रहारो दत्तः उद्घाटिता सा मंजूषा, तस्यां दृष्टा चातीव सुन्दराम्लानपुष्पमालालकृता श्रीवर्द्धमानस्वामि प्रतिमा,जाता जिनशासन्नोनतिः अतीवानंदिता प्रभावती एवं बमाण सम्वन्न सच्चदंसणो अपुणभवो भवियजणमणाणंद जय चिन्तामणि जय गुरु जय २ जिणवीर अकलङ्कि १ तत्र प्रभावत्या अन्तः पुरमध्ये चैत्यगृहं कारित तत्रीय प्रतिमा स्थापिता तां च

Loading...

Page Navigation
1 ... 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112