Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukanraj S Porwal

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Page 83
________________ ( 78 ) . . इसी तरह जीवाभिगम सूत्र में विजय देवता ने पूजा करी हैं। जिसका फल यावत् मोक्ष गणधर भगवान ने फरमाया है। कितनेक ( ए. पी. ) सरीखा भोला भाई 'जिन प्रतिमा जिन सरीखी' कहने में हिचकते हैं । परन्तु श्री गणधर भगवान (धुवं दाउणं जिणवराणं ) यह खुलासा फरमाया है कि धूप दिया-जिनराज को । तो तुम लोग गणधरों की माफिक कहते क्यों शरमाते हो ? " या गणधर भगवान का वचन सच्च नहीं मानते हो ? प्रिय ! जैसे भैरव की मूर्ति को भैरव कहते है । लकड़ी के घोड़े को, घोड़ा कहते हैं तो भगवान की मूर्ति को भगवान कहने में कम हरजा है ? देखो! अंतगडसूत्र में द्वारकानगरो को पाठ.पच्चक्खंदेवलोगभूयाए' ) कहा है तथा भगवती आदि में (इंदमहेतिक) आदि कहा है । इसी से सिद्ध हुमा कि जिन प्रतिमा जिन सरीखी कहना सूत्र प्रमाण से है। आगे चोथा उपांग पन्नवणाजी जिसके पद 11 वे में (ठवणे सच्चे) कहा है तथा चम्पा आदि नगरी में अरिहतों का मन्दिर है । सो पीछे लिख आये हैं । देख लेना। . ..: प्रिय ! सूर्याभ देवता के अधिकार में (प्रश्न ) [ उत्तर ] बहुत से हैं । वो हमारी बनाई सिद्ध प्र० मु० में अच्छी तरह समाधान किया हैं । यहां नहीं लिखने का कारण यह है कि ( ए. पी: ] लश्कर वाले ने प्रतिमा छत्तीसी का वृथा खण्डन करने को कं० - 1 देवलोक कह द्वारका कह । 2 इंद्र प्रतिमा का मोछव को इंन्द्र मोछव कहा है।

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