Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukanraj S Porwal

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Page 81
________________ ( 76 ) जलथलयभासुरपभूतेणं विट्ठावियवसद्धवन्नेणं कुसुमेणं जाणुस्सहप्पमाणमित्ते पुष्फोवयारे किज्जइ ॥ 1 ॥ ___अर्थ-स्थल कुसुम ते चम्पाजाई प्रमुख जल कुसुम ते कमला. दिक भास्वर तेजवन्त प्रभूतघणा नोचा छे बीट जेहना एतले उर्द्धमुखे पांचवर्ण फुल्ले करी ढीचण प्रमाण फूलनी पूज फूल पगर करे इत्यादि। .. प्रिय ! अब आंख मीच के सोचो, मूर्ति पूजा के प्रमाण में कुछ कसर रही है ? देखो ! आप के तेरापंथी ने एक दया उत्थापण के वास्ते कितनी कुयुक्तियाँ तैय्यार करी हैं ? वैसे ही आपको भी एक जिन प्रतिमा न मानने से श्री तीर्थकर गणधर और पूर्व आचार्यों के वचनों की पाशातना करनी पड़ी। तो पिण अन्त का तन्त में तो झूठ सो झूठ ही रहेगा। स्मरण रहे! आखिर तो मूर्ति पूजा बगैर मोक्ष नहीं है । कारण आपकी श्रद्धा से आपकी गति देवलोक को होगी वहां तो मूर्ति पूजना ही पड़ेगा ! कहो फेर आपको यह संसार वृद्धि को कुयुक्ति करने में क्या फायदा हुवा ? बन्धवो ! इस प्रवृत्ति को छोड के श्री वीतराग देवों के वचन पर आस्ता रख के ऊपर लिखी मूर्ति पूजा की सम्यक् प्रकार श्रद्धा रक्खो। जिससे आपका जल्दी कल्याण हो । इति ।। 12 ।। रायपसेणीसुरियाभे पूजी । जीवाभिगमविजयसुरङ्गजी । धवं दाउणं जिणवराणं ठणेस च्चेचौथेउपाञ्जीप्रतिमा. 13 अर्थ--राय पसेणी सूत्र में सुरियाभ देवता ने जिन प्रतिमा की 17 प्रकार से पूजा करी है । यह बात जैनियों में प्रसिद्ध है । तत्र मूल सूत्र पाठ -

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