Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukanraj S Porwal

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Page 80
________________ ( 75 ) बहवे राइसर तलवर माईविय कोबिय इन्भ सेट सेनावह सत्यवाह पभितिआ अप्पेगड्या बंदणवत्तियं अप्पेगइया पूअणवत्तिय एव सक्कारवत्तियं सम्माणवत्तियं इत्यादि। अर्थ-अनेराइ बहवे घणा राजा मंडलिक ईसर युवराजा तलवर मउडबंदराजा माडंबिय मडंबना अधिपति कोडुबिय कुटुबना नायक गजांतलक्ष्मी जेहने नगर सेठ बड़ा सना चतुरंग सेना कटकना नायक सार्थवाह सायतांडासी सोमितना चलावणहार प्रभृतिए आदि देइनइ एकेक पूर्वई कह्या ते वांदिवा स्तुति करवा तिणेइ ज निमित्त आवे, एकेक पूजा जिम पुष्पादिक पूजिये तिम पूजाने इज निमित्त आवे, इम सत्कार वस्त्रादिक जिम सत्कारने ज निमित्त आवे, सन्मान उठी उभां थाइवो बहुमान देवो तिणो निमित्त आवे। । लो और सुनो अणुयोगद्वार सूत्र मूल पाठ (तिलुक्कमाहित पूइयेहिं ) अर्थ-त्रिलोक्य त्रिभुवनपति ब्यंतर नर विद्याधर वैमानिकादिक समुदाय रूप तेणे महित कहतां आनन्दाश्रुवहति दृष्टि से सहर्षपणे निरख्या छे जे भगवन्त तेणे तथा महिता केवल गुणो'स्कीर्तनरूप जे भावस्तव तेणे तथा पूजित कहतां चन्दम पुष्पादिक द्रव्यपूजा करो पूज्या छे जे भगवन्त । अब समोसरण का फूलों का समवायंग सूत्र में है। सो सुनो मूल पाठ -

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