Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukanraj S Porwal

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Page 79
________________ ( 74 ) १५. ( उत्तर०) जो तुम साधु अर्थ करोगे तो आचार्य उपाध्याय साधवी भी अवन्दनीक ठहरेगा। • प्रिय ! जैन सिद्धान्तों के रहस्य को समझो। जैसे एक सेठ के - नाम का नौता आवे उसी में सेठ का बेटा पोता आदि सब जीमने को जा सकते हैं । ऐसे ही अरिहंत के नाम में आचार्य उ० साधु 2 आ गया। (संग्रहनयमत से) सिद्ध हुआ दूसरै पाठ में प्रतिमा अंबड श्रावक ने वांदी है। ...पाठको ! अन्य सूत्र में नगरी बाग भगवान का समोसरण तथा पुरुष वांदवा जाने के अधिकार में उववाई की भोलामण दी जाती है । कारण (उववाई) में विस्तार से वर्णन किया है। जिसमें भगवान का समोसरण संक्षेप से लिखता हूं। चित्र में देखो। ... प्रिय ! भगवान के समोसरण तीन दिशा में बिंब 'प्रतिमा' स्थापना है । जिसको चतुर्विध संघ वन्दे पूजते हैं और समोसरण में फूल ढींचण ‘गोडा' परिमाण होते हैं । अब प्रतिमा वन्दना पूजने में क्या अकल बन्दों को कुछ भी शंका रहती है अपितु कभी नहीं। :: (प्रश्न ) फूल सचित्त है । भगवान की 'द्रव्य पूजा करता होवे तो 5 अभिगम में सचित्त वस्तु बारे मेली किम जावे ? ........ ( उत्तर ) प्रिय ! बाहिर रखे वो आपके उपयोग की वस्तु । जैसे पहनने को फूल माला, खाने का पाम आदि । परन्तु पूजा की सामग्री नहीं समझना । देखो इसी उपवाई सूत्र में चन्दना के अधिकार में गणधर महाराज ने खुलासा मूल पाठ में फरमा दिया है । सो सुनो ! मूल पाठ

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