Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukanraj S Porwal

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Page 71
________________ ( 66 ) - करो। ऐसे ऐसे अनेक बोल हैं। इस विषय में हमारी बनाइ सि० प्र० मु० देखो ! [ प्रश्न ] अजी महात्माजी ! ऐसा अर्थ न तो पेस्तर मैंने पढ़ा है न मैंने किसी से सुना, मैंने तो यही सुना था कि मूर्ति मन्दिर अधर्म बली द्वार में है । परन्तु आज सूत्र सुनकर मेरा भ्रम दूर हो गया है। अब इस वक्त आचारांग में जो ' जाई मरणमोयणाए ' इन शब्दों का अर्थ सुनना चाहता हूं । सो आप कृपा कर सुनावें । [उत्तर] अहो सत्यचन्द्र ! ऐसा अर्थ आगे नहीं सुनने का कारण यह कि अभी कितने ही लोक माडर प्रवाह है एक गार्डर करें बें तो सब गाडर बें बैं करने लग जाते हैं । परन्तु उसके तात्पर्य समझने वाले तुम्हारे सरी खे बहुत कम हैं, लोग जहां काम पडे तब 'चैइय' पाठ दिखाके कह देते हैं कि देखो भाई 'मन्दिर प्रतिमा' अधर्म द्वार में है । भोले भद्रिक जीव देख के भ्रम में पड़ जाते हैं। परन्तु अब तो कितने ही लोग तुम्हारे जैसी • खोज करने लग गये हैं । तुमने जो आचारांग सूत्र कहा सो ठोक । हमारी बनाई सि० प्रo मु० पुस्तक में विस्तार से लिखा हुआ है । सो देख लेना, और कितने ही लोग मूर्ति के द्वेष से कहते हैं कि जन्म मरण के मिटाने को हिंसा करे तो बोध बीज का नाश होवे । इसमें आचारांग का पाठ ' जाई मरण मोयणाए ' दिखाते हैं। इसमें तुम को जो शंका हो तो इसी का अर्थ पूर्वाचार्यों ने किया वो मैं आपको सुना देता हूँ।

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