Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukanraj S Porwal

Previous | Next

Page 69
________________ [ 64 ] शिय पक्वणिया कुलक्खा गौंड सिंहल पारस कोचअन्ध. दविल बिल्लल पुलिन्द अरोस इत्यादि । ___ अर्थ-क रकर्म का करने वाला घणा म्लेच्छ देश का पन्नवणा सूत्र में अबार्य देशों का नाम कहा है। कहां ते सक्क देगनां यवन देशनां सबर बच्छर कायमरुडा उभडग मित्तिक पक्वणिककुलाक्ष गोडीसिहल पारसक्रौंच अंधडविड बिलकल पुल्लि द्र आरोप इत्यादि। 5 तस्स य पावस्त फलविवागं अयाणमाणा वत्ति महभयं अविस्समावेषणं दोहकाल बहुदुक्खसंकडं नरय तिरिक्ख जोणि इओ आउक्खए चया असुभ कम्म बहुला उवदज्जति नरएसु हुलितं महालएसु इत्यादि । भावार्थ-पाप करने वाले को फल नर्क तिर्यंच का घोर दुःख बताया है । इत्यादि। प्रिय पाठको ! उक्त पांच अधिकार संक्षेप से कहे हैं। विशेष देखना हो तो सूत्र मेरे पास मौजूद है । देख लेवें, प्रिय ! अधिक खेद का विषय तो यह है कि उक्त पांच अधिकार अनायं मिथ्याती के वास्ते हैं। परन्तुः हमारे स्थानकवासी भाई मूर्ति उत्थापने के लिये खुद ही उक्त पाठ से शामिल हो गये हैं। मगर उन लोगों को यह खयाल नहीं है कि श्री. प्राचारांग सूत्र में भगवान ने फरमाया है सम्मत देसी न करंति पावं यह बचन हमेशा स्मरण रक्खो। सम्यकदृष्टी ऐसा पाप कदापि म करें, जो करे तो समकित रहे नहीं ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112