Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukanraj S Porwal

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Page 68
________________ [ 63 ] 1 पावो चंडो रुद्दो खुद्दो साहसिओ अणारिओ निग्धिजो निस्संसो इत्यादि । अर्थ-पापप्रकृतिना बन्धन नोकारण चंड रौद्र क्षुद्रः प्रणविमास्यौ प्रवत्यौमलेच्छादि ना प्रवत्या व्याथी अनार्य पापनी निंदारहित सुग्या रहित इत्यादि । क्या स्थानकवासी सब इसमें आ गये ? 2 हिंसा के तीस नाम पाणवह इत्यादि। [2] पाणवहस्स कलुसस्स कडुयफलदेसगाई तं च पुण. करेंति केइ पावा असंजया अविरया अणिय परिणामदुप्पओगी पाणवहं भयकरं बहविहं बहुप्पगार इत्यादि । प्राण वध आदि तीस नाम हैं। ( 3 ) बह वेतसा पाणा इत्यादि अनार्य का कार्य घरहाट खेती आदि करसाणकर्म सभा तोरण देवकुल पगलीया प्रतिमा स्थूभ आदि बहुत विस्तार है । नोट-क्या श्री रुषभदेव प्रभु के निर्वाण के बाद 3 स्थूभ इंद्र महाराज ने कराई वो भी इसी में मानोगे ? तीसरे अधिकार में जलचर, थलचर, खेचर, उरपुर, भुजपुर, चोरेंद्री जाव एकेंद्री तक जीवों की हिंसा जीवकामस्थ धम्महे काम विषय अर्थ धन्य धर्म । टोका-वेदार्थाश्च वेदार्थमनष्ठाना टबार्थ-वेदार्थी अनुष्ठानयवादिहोमे जीवीतव्यनेऽर्थे तथा आचार, इत्यादि हिंसा करने वालों को मंदबुद्धि कहा है । क्या आपका स्थानक इस में आ गया ? 4 हिंसा करने वाला करकम्मकारी इमे य बहवे मिलक्खु नाइ । के ते सक जत्रण सबर बब्बर गायमुडी दभडग ति

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