Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukanraj S Porwal

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Page 57
________________ [ 52 ] - नो खलु मे भंते कप्पइ अज्जपभिइं च णं अन्नउत्थिया वा अन्नउत्थियदेवयाणिवा अन्नउत्थिय परिग्गहियाइं अरिहंतचेइया. ... इंवा वंदित्ता वा नमंसित्ताए वा। १(टीका)नो खलु इत्यादि।नो खलु मम भदंत भगवन! कल्पते युज्यतेअचप्रभृतिइतःसम्यक्त्व प्रतिपत्ति दिनादस्य निर. 'तिचार सम्यक्त्व परिपालनार्थतदयतनामाश्रित्य अन्न उत्थि एति जनयूथाद्यदन्यदयूथं संघान्तरमित्यर्थस्तदस्ति येषां तेअन्ययूथिकाश्चरकादिकुतीथिकास्तान अन्य यूथिकदैवतानि .. बाहरि हरादोनिअन्ययूथिक परिगृहितानि वा अहँच्चैत्यानि अहंत प्रतिमालक्षणानि,यथाभौतपरिगहीतानि रुद्रमहाकालादीनिवदितु अभिवादनतकर्तुं नमस्यतुवाप्रणामपूर्वक प्रशस्तध्वनिभिर्गुणोत्कीर्तनकर्तुम तेषा मिथ्यात्वस्थिरोकरणादिदोषप्रसङ्गादित्यभिप्रायः ।। . 2 अर्थ- हे भगवन् ! मुझ को न कल्पे । क्या न कल्पे सो कहते हैं। आज से लेके अन्यतीर्थी -चरकादि अन्यतीर्थी के देव हरिहरादिक और अन्य तीर्थी के ग्रहण किये अरिहंत के चैत्य- जिनप्रतिमा इनको वंदना करना नमस्कार करना । इस विषय में (ए. पी.) ने खूब धूर्तता से चालाकी करी है । । प्रिय ! आपकी धूर्तता बहुत समय तक चली, परन्तु अब चलने की नहीं है । सुन लीजिये ! सूत्र पाठ हम ऊपर लिख आये हैं । उसमें . (अन्न उस्थिय परिगहियाई अरिहंतचेइयाई वा पाठ है)

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