Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukanraj S Porwal

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Page 60
________________ [ 55 ] किसने सिखाया ! जब पहले पाठ से साधु वंदना सिद्ध किया तो दूसरे पाठ में अन्यतीर्थों का देव हरिहलधर की मूर्ति नहीं वंदे तब अरिहंतों को मूर्ति वंदनी श्रापके कहने से सिद्ध हो गई। फिर सिरपच्ची किस बात की ? ( पूर्वपक्ष ) हम पूजा पाठ में मूर्ति का अर्थ नहीं करेंगे खास हरिहलधर का अर्थ करेंगे 1 ( उत्तर पक्ष ) प्रिय ! आप का किया अर्थ कोई विद्वान् प्रमाणिक नहीं गिनेगा। प्रमाणिक अर्थ वेही हैं कि जो पूर्व प्राचार्य कर गये हैं । हम आप से इतना ही पूछते हैं कि आनन्द श्रावक ने. अन्य तीर्थियों का भाव निक्षपा वन्दना छोडा है कि 4 निक्षेपा वन्दना छोडा है ( स्याम किया है ) ? ( पूर्व ० । श्रानन्द श्रावक ने तो अन्य तीर्थियों का 4 निशेषा चंदना त्याग किया है । ( उ० ) तने से तीथियों का 4 निक्षेषा वंदना आप से हो सिद्ध हो गया । ( पूर्व० ) अरिहंतों की प्रतिमा दूजा पाठ में वंदनीक है, तो फिर तीसरा पाठ किस वास्ते है ? ( उत्तर०) प्रिय ! जैसे बद्रीनाथजी में श्री पार्श्वनाथजी की प्रतिमा, जगन्नाथजी में श्री शांतिनाथजी की प्रतिमा, अन्य तीर्थीलोक अपना देव करके पूजते हैं, जैसे ही जिन प्रतिमा अन्य तीर्थी ग्रहण करते हुये उस प्रतिमा को भगवान के श्रावक नहीं वंदे । प्रिय ! जैसा सूत्र का अर्थ था वैसा मैंने आप को दिया कह है । अब सत्यासत्य का निर्णय करना ग्राप का फर्ज है । 1

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