Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha Author(s): Gyansundar Publisher: Sukanraj S PorwalPage 50
________________ ( 45 ) सुन्दर जिनमंदिर में जाने योग्य ऐसे वस्त्र पहर के मज्जन घर में से निकले । जहां जिनघर है वहां आवे । जिनघर में प्रवेश करके देखते ही जिन प्रतिमाको प्रणाम करे । पीछे मोरपीछी लेकर जैसा सू भि देवता जिन प्रतिमा को सतरा प्रकार से पूजे तसे सर्वविधि जानना । सो सूर्याभका अधिकार यावत् धूप देने तक कहना पीछे धूप देके वामजानु (डाबागोडा) ऊंचा रखे जिमणा जानु ( सज्जा गोडा ) धरती पर स्थापन करके तीन बेर मस्तक पृथ्वी पर स्थापे, स्थापके थोडासा नीचे झुकके हाथ जोड़के दशों नखों को मिलाके मस्तक पर अंजली करके ऐसे कहै नमस्कार होवे परिहंत भगवत प्रति यावत सिद्धिगति को प्राप्त हुए हैं। यहां यावत् शब्द से संपूर्ण शक्रस्तव कहना,पीछे वांदना नमस्कार करके जिन घर से निकले। प्रिय! बात जग जाहिर है कि द्रोपदो महासती ने जिनप्रतिमा पूजी पौर नमोत्थुणं किया है । तद्यपि ( ए० पी० ) ने कदाग्रह के वश होके भद्रक जीवों को बहकाने के लिये कुयुक्तियां करी हैं। परन्तु किसी सेठ को एक लोफर प्रादमी ने कहा मैंने तो आपको मर गया सुना था । सेठ ने कहा में तो जिन्दा बैठा हूं । लोफर ने कहा मुझे भला मादमी ने कहा था । प्रस्तु विचारो लापर का कहना सत्य है,या सेठ प्रत्यक्ष बैठा वो सत्य है ? मतलब, हम ऊपर लिख पाये हैं। वीतराग गणPage Navigation
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