Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha Author(s): Gyansundar Publisher: Sukanraj S PorwalPage 52
________________ ( 47 ) पा० यत् = [ णहाया कयबलिकम्मा ] . टोकार्थ-स्नानान्तरं कृतनलिकम्मैः स्वगृह देवतानां ते तथा । मतलब प्रतिमा पूजी । टवार्थ-हाया-स्नान कीधी।कयबलिकामा-आपणा। घरना देवताने कोधा बलिकर्म अर्थात् प्रतिमा पूजा करो। [ पूर्वपक्ष ] उक्त श्रावकों ने कुल देवी की पूजा करी है । [उत्तर पक्ष प्रिय ! वे भगवान के श्रावक आप सरीखे नहीं सो थे भैरव, भवानो, चण्डी माता आदि को पूजते फिरे । उक्त श्रावक ने तो व्रत लेते हो अन्य देवों को पूजने का त्याग किया है । पाठनो खल मे मते !कप्पई सम्मपनिइंच अन्नउत्थिया! वा अन्नउत्थयदेवयाणिवा इत्यादि इस पर गणधर भगवान ने मौहर छाप लंगा वी है। वो भी सुन लीजिये। (असहिज्जदेवा सुरनाम सुबण्ण जक्ख रक्खम किपर (किपुरिस)Page Navigation
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