Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukanraj S Porwal

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Page 48
________________ ( 43 ) करते हो ? आगे सुनो! चैत्य का अर्थ सूत्र में खुलासा प्रतिमा किया है ठा० 3 उ.1 . ... जीव शुभ दीर्घ प्रायु तीन कारण से बांधते हैं । पाठ-"देवीयं चेइय" उववाई में भगवान को बंदने के अधिकार में पाठः "देवयं चइयं" भगवती मादि में ऐसा पाठ बहुत है। इसका अर्थ देवता का चैत्य ( प्रतिमा ) नी परे पाप की सेवा भक्ति करु ( टीका देवतं दैवचैत्यं इष्टदेव प्रतिमा ) आगे वंदे हैं नमसेइ नहीं इत्यादि इसी से मालम होता है कि ये लोग ( नय ) निक्षेपे के ज्ञान से शून्य हैं । जो कि (नय ) का ज्ञान होता तो ऐसा कुयुक्तियां कदापि न करते। बांधव ! यह वचन संग्रहनय का है । इस में सम्पूर्ण चैत्य, वंदन आ जाते हैं उववाइ में एक वचन है ठाणांग सूत्र ( एगे आया ) देखो आचारांगसूत्र में तोर्थ यात्रा कही है । गौतम स्वामी ने अष्टापद को यात्रा करो है । तो फिर शंका ही किस बात की ? जैसा शास्त्र में वैसा प्रतिमा छत्तीसी में है, इत्यादि सूत्रार्थ से सिद्ध हुवा कारण मुनि ने शाश्वतो प्रतिमा वंदो है इति ।। सती द्रोपदी प्रतिमा पूजी । ज्ञाता सूत्र मंक्षार जी । माएविश्रावक अङ्गसात में। सुण तेहुमो अधिकारजी प्र० ।। 8॥ अर्थ - सूत्र माताजो अध्ययन 16 पाठ- .

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