Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukanraj S Porwal

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Page 47
________________ ( 42 ) को गये, अब कहते हैं कि ज्ञान बन्दमे को गये। प्रिय! बाल की भीत कितनी देर की तुम्हारे 32 सूत्र में किसी जगह ( चैत्य ) को शान कहा है तो बतलाना था ।लो! सुनो, नंदी, भगवती,पन्नषणा, अणुयोगद्वार प्रादि बहुत सूत्रों से पाठ-नाणं पंचविहा पण्णता: तथा; अनेक साधु सामायिक आदि 11 अंग 14 पूर्व भणीया हैं । परन्तु 5-11-14 चैत्य नहीं किया और ज्ञान तो एक वचन है और चैइय बहु वचन है । प्रिय ! ज्ञान तो अरूपो है तो क्या उक्त द्वीप में ज्ञान का दिगला पड़ा है ? ज्ञा नको वंदते तो वहां द्वीप में जाने की क्या जरूरत थी ? आगे मुनि अपने स्थान नगर में प्राके असाश्वती प्रतिमा वंदी है । वो क्या अर्थ करोगे ? प्रिय ! भाव ज्ञान तो अरूपी है और स्थापना ज्ञान कहोगे तो प्रतिमा कहने में क्यों शरमाते हो। हमारे कई स्थानकवासी भाई पिण (चैत्य) का अर्थ मन्दिर प्रतिमा करते हैं । (1) प्रश्न व्याकरण प्रश्रवद्वार 1 (चत्य) अर्थ.प्रतिमा उक्त सूत्र प्र० 5 उक्त सूत्र अ) 10 । (2) उपवाई पूर्ण भद्र (चैत्य अर्थ) मन्दिर प्रतिमा। (3) व्यवहार सूत्र चूलका (चैत्य) अर्थ प्रतिमा । (4) ज्ञाता, भगवती आदि में पदों के अधिकार (चैत्य) अर्थ प्रतिमा । तो क्या जिन प्रतिमा के द्वेष वास्ते हो चैत्य का प्रर्थ ज्ञान

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