Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukanraj S Porwal

Previous | Next

Page 46
________________ ( 41 ) पाठको ! इस विषय में पागे बहुत चर्चा हो चुकी है । जिस से लंका गच्छो अनेक महानुभावों ने प्रतिमा वंदणी स्वीकार कर लिया है । जैसे संवत् 1610 के लगभग अहमदाबाद में लूका गच्छो पूज्य मेघ जी ऋषि ने प्राचार्य पद छोड के पचीस साधुओं के साथ में जैन दीक्षा ली है । ऐसा तो संख्या बंद प्राज तक चला ही आता है। इस पर (ए. पी.) ने गालियां देने में ही अपना जन्म सफल माना है, प्रागे पहिले तो लिखा है कि चारणमुनि द्वीप देखने को गया है पाके पालोयणा लेते हैं, आगे ज्ञान को वन्दे है, आगे वंदइ है पिण नमसेइ नहीं है। इनके सिवाय दुर्वचनों से कागज काला किया है। पाठको! ध्यान देके सुनो, सामान्य साधु को भी किसी वस्तु को देखने के निमित्त जाने का भगवान् ने निशीथ सूत्र में मना किया है, देखने जावे तो प्रायश्चित कहा है । तो चारणमुनि द्वीप देखने को जाव और भगवान् उसका वर्णन करें, यह बात असंभव है । दूसरा-आलोयण तो रस्ते पाते जाते की है,जैसे मुनि गौचरी से पा के पालोवणा करते हैं परन्तु यह नहीं समझना कि गौचरी गया उसकी आलोवणा है। प्रिय ! पालोवणा तो रस्ते में जाते प्राते प्रविधि की हो सकती है। तीसरा-चैत्य शब्द का अर्थ ज्ञान करा ज्ञान को बन्दे । विचारो! पहिले तो लिखा है कि द्वीप देखने

Loading...

Page Navigation
1 ... 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112