Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukanraj S Porwal

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Page 44
________________ ( 39 ) साधु के शरणों में कहोगे तो तीसरा प्रमगार का शरणा कह दिया है । कहो! अब मैंने पांचवा शरमा कहा है कि आपने पांचवां शरणा बनाया है ? अब भी कुछ शका हो तो और सुनरे । छदमस्थ अरिहत पांच पदों में कौनसे पद में हैं ? जो अरिहंतों के पद में कहोगे तो अरिहंतों का पहिला शरणा है । जो साधु पद में कहोगे साधु का तो तीसरा शरमा कहा है । बतलाइए ! अनन्ता तीर्थकर के तो 4 शरण 5 पद कहे हैं तुम 5 शरणे और 6 पद कहाँ से लाये ? आप किसी अन्यायी के जाल में पड़ गये हो तो उन से पूछों कि मुझे झठा कदाग्रह में क्यों फंसा दिया ? खैर अब भी जन्म सुधारणा चाहते हो तो श्री वीर प्रभु ! की वाणी का शरणा लो । अस्तु ।। 611 शाश्वती अशाश्वतो प्रतिमा वंदे, दुग चारण मुनिरायजो । शतक बीसमे उद्देशे नवमे, बहु वचन कहयो जिनरायजी। प्रतिमा. 17॥ - अर्थ- भगवती सूत्र शतक 2' उ09 का पाठ में चारणमुनियों ने जिन प्रतिमा वांदी है । सो मूल पाठ है - 2 यत्-जंघाचारणस्स णंभंते ! तिरियं केवतिए गतिविमए 'प. ? गोयमा !से णं इओएगेणं उप्पाएणं रुयगवरे दीवे समोसरणं करेति करइत्ता तहि चेइयाइं वदइ तहि चे ? तओ पडिनियत्तमाणे बितिएणं उप्पाएणं नंदीसर वरदीवे समोसरणं करेति नदो. 2 तहि लेइयाई बंदाइ हिं चेइयाई वं. इहमागच्छइ 2 इह चेइयाई वंदइ, जघाचारणस्स पं गोयमा ! लिरियं एवतिए मइविसए प।

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