Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukanraj S Porwal

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Page 43
________________ ( 38 ) . . . अर्थ गम है । इसी का मतलब जो अरिहंतों की प्राशातना है । भेरू प्रादि की मूर्ति को पूठ देने में भेरू की माशातना होती है कारण ? उस मूति में भेरू का प्रारोप है । वैसा ही भगवती सं.10 उ'5 देवता डाढा को प्रशिातना टाले. ऐसा पाठ है और डाढी की भक्ति करते हैं. आशातना पाप है । भक्ति धर्म है और देखो दशवकालिक अ09 उ० 2 गाथा। संघट्टइत्ता काएणं, तहा उहिणामवि । खमेह अवराहं मे, वइज्जा न पुगोत्तिए । भावार्थ -- गुरु की उपधि आदि की पग आदि लगने से आशात ना हो जावे तो गुरु को ही खमावे। उपधि अजीव होते हुये भी गुरू महाराज को उपधि होने से गुरु महाराज की जितनी आशातना होती है उतनी ही गुरु की उपधि पर पैर आदि लगाने से होती है । इसी तरह जिन प्रतिमा के प्रति भी समझ लेना ।(ए. पो.) ने चमर इन्द्र महावीर स्वामी का शरणा लेके गया का पाठ लिखा है इस विषय में हम ऊपर लिख पाये। आगे 4' शरणों में मूर्ति किस शरणा में है ? ऐसा विकल्प किया है । अतः बंधव ! अरिहतों की मूर्ति अरिहन्तों के शरणों में है. और सिद्धों की मूर्ति सिद्धों के शरणों में है। इमो का समाधान भी ऊपर कर आये हैं (प्रश्न) फिर तीन शरणों में जुदा जुदा क्यों कहा (उत्तर) किसी काल क्षेत्र से यदि तीर्थंकरों का योग न हो तो प्रतिमा या साधू के शरणे से जा सकता है परन्तु तुम (अरिहंतचेईयाणि) का अर्थ छद्मस्थ अरिहंत करते हैं ए 4 शरणों में से किस शरणों में है ? जो अरिहतों के शरणों में कहोगे तो पहले पाठ में तो अरिहत का शरणापा गया है । कदाचित् AGE..

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