Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha Author(s): Gyansundar Publisher: Sukanraj S PorwalPage 32
________________ [ 27 | गोचरी की झोली साधु हाथ की कलाई पर लाते थे । आहार गृहस्थी को नहीं दिखाते थे। | अभी हाथ में लाते हैं घर घर में आहार दिखाते हैं। कोई जगह पात्रे का आहार देखके बालक रोने लग जाते हैं। 8. संखग वंध लुकागच्छ के साधु, यति, श्री. | पूज्य, श्रावक आदि जाते हैं। तीर्थ यात्रा को नहीं जाते थे। स्थानक-धर्मशाला भी नहीं कराते थे। 9 विशेष गामों में स्थानक-धर्मशाला होते हैं। साधु चद्दर की छाती पर गांठ नही लगाते थे। अब खून कसके गांठ लगाते हैं और चोल. पट्टा फकीर टका तमलकी परे पहनते हैं । संख्या बंद श्रावक दूर देशों में साधु को वन्दने को जाना और चातुर्मास पर्युषणा में भट्टियां चलानी इत्यादि बातें नहीं थीं इत्यादि अनेक बोल हैं पुस्तक बढ जाने के भय से नहीं लिखा है। संख्या बंध श्रावक दूर देश में साधु को वदने जाते हैं। चौमासा-पर्युषण में भट्टियां चलाते हैं। कोई गांव में तो बिचारे साधा रण ग पर हजारों आदमी जिमाने का दण्ड पड़ जाता है।Page Navigation
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