Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukanraj S Porwal

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Page 35
________________ [ 30 ] नक्शा ( फोटू) हो तो बतलाओ । ( स्था० ) हम स्थापना नहीं मानते हैं, जावो ! हर किसी ग्राम में पूछ लेना । तब विदेशी वहां से चला । रास्ते में पूछते 2 एक नगर में कूडापंथी साधू पकोडीमलजी था | खबर होने से विदेशी उनके पास गया कूडा पंथी साधु ने उपदेश दे के अपना शिष्य बना लिया । प्रस्तु 1 1 दूसरा दृष्टांत एक विदेशी सत्यचन्द्र ने किसी जैनी से कहा कि मुझे किसी महात्मा से धर्म सुनना है । जैनी - सिद्धाचलजी के आस पास धर्म धुरंधर जैनाचार्य श्रीधर्म प्रभाकर सूरि विचरते हैं। उनके पास पधारो । विदेशा- वो आचार्य कैसे हैं ? तब जैनो एक पुस्तक विदेशी को दी "इसको पढ़ो " (विदेशी) पुस्तक हाथ में लेके देखने हो प्रथम आचार्य महाराज का शांत मुद्रा वाला फोटू दृष्टिगोचर हुवा इतने ही से सम्यकत्वरत्न की प्राप्ति हो गई । श्रागे देखे तो आचार्य का गृहस्थावास को बाल श्रवस्था का चरित्र और फोटू । आगे व्रतधारी का चरित्र और फोटू देखा । ये तीन अवस्था देख के सिद्धाचलजी की तरफ चला । मार्ग में प्राचार्य का नाम पूछता पूछता एक नगर में जा पहुंचा। वहां एक धर्म प्रभाकर नाम का प्राचार्य सुनकर बिदेशी उनके पास गया । परन्तु मुंह वधा देख के पीछा प्राने लगा । तब ए- पी. सरीखा कदाग्रही विदेशी को कहने लगा । " श्रजी ! भाई धर्म प्रभाकर आचार्यं यही है" विदेशी बोला नहीं जी नहीं, उन आचार्य का फोटू मेरे पास है सो देखो "फेर देखने से सब का चित्त शान्त हो गया । (विदेशी) आगे गिरनार की गुफा में वह नाम और फोटू वाला आचार्य ध्यानरूढ देख वन्दना नमस्कार कर सेवा से उपस्थित हुआ फिर प्राचार्य महाराज का ध्यान समय पूर्ण होने से प्रसन

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