Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukanraj S Porwal

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Page 36
________________ [ 31 ) पर विराजे । इतने में दो आदमी आचार्य के पास आये । आचार्य महाराज ने अति गंभीरता व मधुर ध्वनि से वीतराग प्रणीत धर्म सुनाया। लेकिन उन मिथ्यात्वियों को कुछ भी असर न हुआ । तब विदेशी ने विचारा कि "निक्षेपा तो निमित्त कारण है' उपादान कारण तो अपनी प्रात्मा हो है । तो पण निमित कारण की आवश्यकता है, जिससे मैंने इसी प्राचार्य महाराज द्वारा स्थापना से हो धम को प्राप्त किया है और 2 आदमियों को भाव निक्षेपे से भी धर्म प्राप्त नहीं हुआ । अस्तु .. पाठको ! दोनों दृष्टान्तों को ध्यान में रक्खो। प्रथम दृष्टांत में तो कारण स्थापना को नहीं मानो तब भाव कार्य को ही खो बैठे । जो कि कारण स्थापना(फोटू)पास में होता तो कूडा पंथियों में मिल के दीर्घ संसारी न बनता अस्तु दूसरा दृष्टांत का सारांश-पास में (फोटू) था तो मुंह बंधे के जाल से बच गया और प्राचार्य की चार अवस्था और च्यार निक्षेपों के स्वरूप को ही जान लिये और कारण कार्य का भेद को भी समझ लिये । ये कथन सूत्र में है । ज्यादा विवेचन नहीं किया है । आगे सवैया कुडल्या लिख के बहादुरी दिखाई है । इस वास्ते मेरे पास 100-200 मौजूद है। परन्तु बहुत जनों का दिल दुक्खे वैसा लिखना उचित नहीं समझता हूं। आगे लिखा है "तू क्यों फजीती करवाता है" इत्यादि । बंधव ! फजीती सत्य को होवे के असत्य की? जो को है तो माप का लेख पढके चीमटी भर शक्कर आप के मुह में हर कोई दिये सिवाय नहीं रहेगा। सत्य का व्याख्यान तो श्री सीमन्धर स्वामी पाप का मुखारविन्द ने हमेशा करते हैं। इति ।। 3 ।।

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