Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukanraj S Porwal

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Page 34
________________ [ 29 ] प्याचार्योयमिति) स्थानकवासियों का माना हुआ टब्बा अर्थ (ठवणा) जिन के विरहे जिनपडिमा आचार्य के विरहे स्थापना श्राचार्य ते सत्य । इम गणधर भगवान भाख्यो । जैसा सूत्र में वैसा प्रतिमा छत्तीसी में । तथापि ए.पी. ने लिखा है कि "गयवर चन्द ने लिखा वैसा सूत्र में नहीं है" यह लिखना सत्य है या मिथ्या है ! पाठक वर्ग स्वयं विचार लें । आगे ठेवणा-सत्य को व्यवहार-सत्य कहके लकड़ी घोडे के हेतु लगाये हैं इत्यादि विचार करो । साधु लकडी के घोड़े को घोडा कहते हैं तो सत्यभाषा है । तो फिर वीतराग देव की प्रतिमा को वीतराग कहने में क्यों शरमाते हैं और मूर्ति को पत्थर जड कर के संसार वृद्धि क्यों करते हो ? ( च्यार निक्षेपा वंदनीक । दूजे दुहा के अर्थ में देख लेना ) आगे एक आचार्य का दृष्टांत दिया है | उनका मतलब तीन निक्षपा शून्य बतलाया है । प्रिय पाठको ! (ए. पी ) भगवान का नाम, स्थापना, द्रव्य, तीन निक्षेपा को तो शून्य कहते हैं और चोथा भाव निक्षेपा इस काल में है नहीं। तब तो भगवान का शासन ही विच्छेद हो गया । बाह रे नारिजक ! लै सुन ! में निक्षप का दृष्टांत सुनाता हूं एक विदेशी ने लापरचन्द स्थानकवासी से पूछा कि मुझे किसी महात्मा के पास धर्म श्रवण करना है । तब (स्थान० ने) कहा कि हमारे साधु पूज्य पकोडीमलजी दिल्ली तरफ विचरते हैं । विदेशी ने कहा कि मैं उन्हें नहीं जानता हूं, वे कैसे हैं ? उनका

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