Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukanraj S Porwal

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Page 33
________________ [ 28 ] अब भी आपकी कलई खुलने में कुछ कसर रही है ? इससे ज्यादा देखना हो तो अन्य पुस्तकों में देख लेना । ढूंढक चरितावली या कुमति कुठार में देखो । आयंदा से कुयुक्तियां करने की प्रवृत्ति छोड देना । ये आप के हित के लिये ही मैंने अपना अमोल समय इस कार्य में लगाया है । स्थानकवासी समाज पर मेरा किंचित मात्र भी द्वेष भाव नहीं है। बल्कि मेरे पर जितना स्थानकवासियों का उपकार है, वह हमेशा मानता हूं, प्रति उपकार के लिये ही यह परिश्रम उठाया है । ॥ इति प्रथम द्वितीय गाथार्थ ॥ ठांणायंगे चौथे ठाणे, सत्य निक्षेपा च्यारजी । दसमे ठाणे ठवणा सच्चे, इम भावयो गणधारजी अर्थ – ठाणायंग 4 उ० 2 पाठ - चउव्विहे सच्चे पणते तं जहा - नाम सच्चे, ठवणा सच्चें, दव्व सच्चे, भाव सच्चे । टीकासत्य सूत्र नामस्थापनासत्ये सुज्ञाते, नाम सत्य मनुपयुक्तस्य सत्यमपि भावतत्यं तु । , स्थानवासियों का माना हुआ टब्बा अर्थ-चार प्रकारें सध्य i साच कहयो ते कहेवं नाम सत्य ते रिषभादि 1 स्थापना सत्य भगवंतनी प्रतिमा 2 द्रश्य सत्य जे जीव जिन था से 3. भाव सध्य ते प्रत्यक्ष बैठा जिन 4. ठणांग सूत्र ठाणा 10 में दस प्रकार का सत्य । ठवणा सच्च टोका - C स्थापना सत्य यथा अजिनोपि जिनोऽय मणाचार्यों ·

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