Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukanraj S Porwal

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Page 30
________________ [ 25 ] प्रिय ! ये तो नमूना लिखा है। ऐसे तो अनेक बोल हैं। जितनी शासन की निंदा हो रही है सब इन्हीं लोगों की ऊपर लिखी प्रबुत्ति का ही कारण है । अब स्वयं विचार कर लेवें कि हिसा धर्मी कौन है ? क्या मापने समवायांग सूत्र नहीं सुना ? आप अपराध दूसरे पर डालने से महान मोहनीय कर्म बंधता है । श्राज अापके गुरु लुकाजी जगत में नहीं हैं, तब ही आप हिंमा की गठर चला रहे हो। लुकाजी ने मोहनी कर्म के उदय से जिन प्रतिमा उत्थापी यो परन्तु तुम्हारे सरीखी हिंसा की प्रवृत्ति नहीं चलाई थी जो कि तुम्हारे सरीखी हिंसा की प्रवृत्ति रखता तो कृतघ्नी पंथ कभी नही 1 चलता । प्रश्न – क्यों महात्माजी ! लुकाजी और अभी के स्थानकवासीयों की प्रवृत्ति एक है या भिन्न-भिन्न हैं ? पाठकों ! इन को प्रवृत्ति में जमीन आसमान का फर्क है कृपया फर्क हमें भी सुनाइये । लो सुनो ! परन्तु चमकना मत । नाना सुनाता हूं । उत्तर प्रश्न उत्तर - --

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