Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha Author(s): Gyansundar Publisher: Sukanraj S PorwalPage 29
________________ 2 3 4 5 6 7 L अभक्ष अंनत का गृहस्थी की पच्चखाण कराते हैं और श्राप भी नहीं खाते हैं । वासी आहार जा रस चर्चित जिसमें तार बनता है ऐसा नहीं लेते हैं । गृहस्थी का झूठा ग्राहार नहीं लेते हैं । बतनों का झूठा पानी जिसमें विद्वल यदि हो वो नहीं लेते हैं । गरम पाणी पीते हैं । और निर्बंद धोवण भी । मुहरति हाथ में रखते हैं बोलते समय यतना के लिये मुँह आगे रखते हैं । 24 2 3 4 अभक्ष अंनतकाय नहीं खाने का गृहस्थीयों को उपदेश करते हैं और आप खाते हैं । वासी आहार लेते हैं । और ललिया (तार) जीव नहीं वरजते हैं । गृहस्थी का झूठा आहार लेते हैं । वर्तनों का झूठा पाणी ले लेते हैं, और दावा करते 5 11: 1-1 कच्चे पाणी के घड़े में राख घाटा, दूद ओले कोलडून खेके पा लेते हैं तो कितनेक गरम पाणी भी पीते हैं । मुँह-पती से रात दिन मुहबन्धा रखते है और उनके श्लेष्म नाक के मेल आदि से असंख्य सम्मच्छिम मनुष्य उत्पन्न होते हैं । मुंह बंधन संवत् 1708 में लवजो ढुंढक साधु ने नया पन्थ चलाया है ।Page Navigation
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