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अभक्ष अंनत का गृहस्थी की पच्चखाण कराते हैं और श्राप भी नहीं खाते हैं ।
वासी आहार जा रस चर्चित जिसमें तार बनता है ऐसा नहीं लेते हैं ।
गृहस्थी का झूठा ग्राहार नहीं लेते हैं ।
बतनों का झूठा पानी जिसमें विद्वल यदि हो वो नहीं लेते हैं ।
गरम पाणी पीते हैं । और निर्बंद धोवण
भी ।
मुहरति हाथ में रखते हैं बोलते समय यतना के लिये मुँह आगे रखते हैं ।
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अभक्ष अंनतकाय नहीं खाने का गृहस्थीयों को उपदेश करते हैं और आप खाते हैं ।
वासी आहार लेते हैं । और ललिया (तार) जीव नहीं वरजते हैं ।
गृहस्थी का झूठा आहार लेते हैं ।
वर्तनों का झूठा पाणी ले लेते हैं, और दावा करते
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कच्चे पाणी के घड़े में राख घाटा, दूद ओले कोलडून खेके पा लेते हैं तो कितनेक गरम पाणी भी पीते हैं ।
मुँह-पती से रात दिन मुहबन्धा रखते है और उनके श्लेष्म नाक के मेल आदि से असंख्य सम्मच्छिम मनुष्य उत्पन्न होते हैं ।
मुंह बंधन संवत् 1708 में लवजो ढुंढक साधु ने नया पन्थ चलाया है ।