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________________ 6 8 1 क्षत्रीय, वैश्य, ब्राह्मण को शिष्य बनाते हैं। इनका आहार लेते हैं। हलवाईयों के कढ़ाईयों का धोवण नहीं लेतेहैं । साधु गृहस्थी के घर में धर्मलाभ देके प्रवेश करते हैं । [ 23 ] [ जैनी ] द्विदल का आहार नहि लेते हैं। 7 8 इनके सिवाय नाई, जाट, कुम्हार मेणा, तेली आदि को भी लेते है । इनके घर का आहार भी खाते हैं । 1 बाजार में हलवाईयों की कढ़ाईयों का बाजे कुत्तादिक व झूठा पानी भी ले लेते हैं । दय ! - हिंसा की समालोचना साधू चोर की तरह चुपचाप गृहस्थ के घर में जाते हैं । वहां पर ढ़की उघाड़ी बहु बेटियों को देखते हैं। इसमें कितनी शासन की होलना होती है ! [स्थानकवासी 5 कितनेक तो विदल को समझते ही नहीं जो समझते हैं वो लोलुपपणा से या कायस् वृत्ति से छोड़ नहीं सकते । उसमें प्रसंख्य जीव उत्पन्न होते हैं तो भी वो खाते हैं ।
SR No.006134
Book TitleGayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherSukanraj S Porwal
Publication Year1999
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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