________________
6
8
1
क्षत्रीय, वैश्य, ब्राह्मण को शिष्य बनाते हैं। इनका आहार लेते हैं।
हलवाईयों के कढ़ाईयों का धोवण नहीं लेतेहैं ।
साधु गृहस्थी के घर में धर्मलाभ देके
प्रवेश करते हैं ।
[ 23 ]
[ जैनी ]
द्विदल का आहार नहि लेते हैं।
7
8
इनके सिवाय नाई, जाट, कुम्हार मेणा, तेली आदि को भी लेते है । इनके घर का आहार भी खाते हैं ।
1
बाजार में हलवाईयों की कढ़ाईयों का बाजे कुत्तादिक व झूठा पानी भी ले लेते हैं ।
दय ! - हिंसा की समालोचना
साधू चोर की तरह चुपचाप गृहस्थ के घर में जाते हैं । वहां पर ढ़की उघाड़ी बहु बेटियों को देखते हैं। इसमें कितनी शासन की होलना होती है !
[स्थानकवासी 5
कितनेक तो विदल को समझते ही नहीं जो समझते हैं वो लोलुपपणा से या कायस् वृत्ति से छोड़ नहीं सकते । उसमें प्रसंख्य जीव उत्पन्न होते हैं तो भी वो खाते हैं ।