Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukanraj S Porwal

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Page 20
________________ [ 15 ] सवाल-हम यहाँ पर आप से इतना ही पूछते हैं कि मूल सूत्र मानते हो तो "णमो णरिहताणं" यह जैनियों का प्रथम सूत्र है । इसका अर्थ करें । जवाब-अजी ! इसका अर्थ तो सीधा है। सवाल-अच्छा । मूल सूत्र से अर्थ फरमावें । जवाब- णमो = नमस्कार । अरि = वैरी । हताणं = हनन करने वालों को। सवाल-अरिहंत कोन से वैरी का हनन करते हैं ? जवाब-अजी ! अरिहन्त कर्म वैरी का हनन करते हैं। सवाल-मूल सूत्र में तो कर्म शब्द की गन्ध भी नहीं है। फिर आप किस शब्द का अर्थ कर्म करते हैं ? आप तो मूल सूत्र ही मानते हैं। जवाब-अजी साहब ! सम्बन्ध मिलाने के लिए तो उपयुक्त शब्द जोड़ना ही पड़ता है | नहीं तो सम्बन्ध ही टूट जावे । सवाल-मित्र ! तो फिर टीका मानने में क्यों हिचकते हो। दीर्घ दृष्टि से बिचारो । टीका उसी का नाम है जो सम्बन्ध को मिलावे । देखो ! आचारांग सूत्र में पच महाव्रत को भावनाएं कही हैं। और समकित के बगैर महावत होते नहीं हैं। इसलिए ही भद्रबाहु स्वामी ने सम्बन्ध पर समकित की भावना कही है तथा आर्द्रकुमार के पिछले भव का सम्बन्ध कहा है। उन भगवान का वचन सत्य मानोगे तभी आपका कल्याण होगा। यदि आपको प्रतिमा से ही द्वेष है तो खुल्लं खुल्ला कह देना चाहिए कि 'सूत्र में तो लिखा है, लेकिन हम नहीं मानेंगे

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