Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukanraj S Porwal

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Page 19
________________ [ 14 ] प्रिय ! यह बात स्वमत परमत वाले सभी जानते हैं । श्री भद्रबाहु स्वामी वीर सम्वत् 170 में हुए। जिन को करीब 1831 वर्ष का फासला हो गया । इतने वर्ष तक तो श्री भद्रबाहु स्वामी के वचन में शंका करने वाला कोई नहीं हुआ । अब भी जो पढ़े लिखे विद्वान स्थानकवासी हैं, वे तो जैसे तीर्थंकर के वचन वैसे ही श्री भद्रबाहु स्वामी के वचनों को मानते हैं । लेकिन जो अनपढ सम्मूमि पंडित बनकर मन में शका करते हैं उन महोदयों से हम पूछते हैं कि आपको प्राचारांग सूत्र की सम्पूर्ण नियुक्ति में क्षंका है या जहां मूर्ति का जिक्र है वहां शका है ? तब तो कहना हो पड़ेगा कि सम्पूर्ण निर्मुक्ति में शंका नहीं है । सिर्फ मूर्ति के अधिकार में शंका है । तब तो प्रगट मालूम होगा कि आपको मूर्ति से ही द्वेष है । जिससे सम्पूर्ण नियुक्ति को माननी और मूर्ति का अधिकार वे वहां शंका करना ! जब नियुक्ति टीका नहीं माननी तो बतलाओ समकित के बिना चारित्र हो सकता है या नहीं ? जो समकित के बिना चारित्र नहीं होवे तो समकित की भावना सिद्ध हो चुकी । श्रार्द्रकुमार कौन था ? किस नगरी में रहता था ? किस निमित्त से प्रतिबोध (ज्ञान) पाया ? यह सब मूलसूत्र से बतलाना चाहिए । यदि टीका से बताओगे तो टीका में तो स्पष्ट शब्दों में प्रतिमा लिखा है । जो कि हम लिख आए हैं । फिर भी यदि मूल सूत्र ही मानने का आप का हठ है, तो अव्वल यह तो फरमाए कि मूलसूत्र के सिवाय आप कुछ मानते हैं या नहीं ? यदि नहीं मानते हैं तो हमारी बनाई हुई सिद्ध प्रतिमा मुक्तावली प्रश्न तीजे में 100 प्रश्न मूल 32 सूत्र के ही पूछे हैं। उनका उत्तर मूल सूत्र से दें 15 # प्रश्नमाला में पूछ हुवे प्रश्नों के उत्तर भी मूलसूत्र से दे ।

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