Book Title: Gayavar Vilas Arthat 32 Sutro Me Murtisiddha
Author(s): Gyansundar
Publisher: Sukanraj S Porwal

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Page 22
________________ [ 17 ] देखो ! प्रतिमा के दर्शन से प्रार्द्रकुमार को ज्ञान उत्पन्न हुमा सो हम लिख पाये हैं। प्रागे प्राचारांग और प्रश्न व्याकरण का अधुरा पाठ लिख के हिंसा हिंसा पुकारी है इत्यादि । __अव्वल तो यह सूत्र पाठ ही असम्बन्ध अधूरा लिखा है । सम्पूर्ण देखना हो तो हमासे बनाई सिद्ध प्रतिमा मुक्तावली प्रश्न चौथे में मूल सूत्र अर्थ सम्बन्ध से है । यह पाठ अनार्यः मिथ्या दृष्टि के वास्ते फरमाया है । यद्यपि अज्ञान के मारे जैनी नाम धरा के भी मंदबुद्धियों की पंक्ति में मिलने का प्रयत्न किया है । हे प्रिय ! जैनी न तो हिंसा में धर्म मानते हैं न जैनियों के प्रागम में हिंसा में धर्म कहा है, न जैनी हिंसा का उपदेश करते हैं प्राप झूठा कलंक जैनियों पर लगाते हैं न जाने आप को क्या गति होगी! ___ अब हम हिंसा अहिंसा का खुलासा करते हैं । सो ध्यान दे के सुनो卐 तीर्थकर ओघा मुहपत्ति नहीं रखते हैं । _ -समवायांग सूत्र ॐ गौतम स्वामी मुहपत्ति नहीं बांधते थे। -विपाक सूत्रे-दुःख थिपाक विक्रम संवत् 1708 में लवजी स्वामी ने मुहपत्ति बांधने की नई प्रथा चलाई है। संक्षेप गाथा ग्यारवी का अर्थ में

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