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२४ । परिशिष्ट २
२४. असमय-असम्यक् आचरण । २५. असत्यसंधान-असत्य की परम्परा को चलाना। २७. विपक्ष-सत्य और सुकृत का विपक्षी। २७. अपधीक-निंद्य बुद्धि से उत्पन्न । २८. उपधि-अशुद्ध-माया से सावाद्य भाषण । २६. अपलोप-यथार्थ को छिपाने वाली वाणी ।
इस प्रकार ये सारे अभिवचन असत्य के उत्पादक, पोषक और असद् मार्ग के प्रतिष्ठापक हैं। अवाय (अवाय)
'अवाय' जैन ज्ञानमीमांसा का पारिभाषिक शब्द है। मतिज्ञान के चार भेदों में इसका तीसरा स्थान है। किसी भी पदार्थ के बारे में निश्चयात्मक ज्ञान अवाय है।
नंदीसूत्र में प्रयुक्त 'आवट्टण' आदि शब्द अवाय के एकार्थक माने गए हैं । अभिधान की भिन्नता से वे भिन्न-भिन्न अर्थ के वाचक हैं।' जैसे१. आवर्तन-निश्चित किये हुए अर्थ का आवर्तन करना । २. प्रत्यावर्तन-उसका बार बार प्रत्यावर्तन करना, पुनरावृत्ति करना। ३. अवाय-उस अर्थ को भली भांति जानना। ४. बुद्धि-उसी अर्थ को और अधिक स्पष्टता से जानना। ५. विज्ञान-उस अर्थ को दृढता से जानना ।
उमास्वाति ने इसके निम्न पर्याय शब्दों का उल्लेख किया हैअपगम, अपनोद, अपव्याध, अपेत, अपगत, अपविद्ध, अपनुत इत्यादि ।'
ये शब्द निषेधात्मक हैं। अविराय (अविलीन)
_ 'अविराय' का संस्कृत रूप अविलीन होता है । वि पूर्वक लीच१. नंदीचू पृ ३६ : अवायसामण्णतो णियमा एगठिता चेव, अभिधान
भिण्णत्तणतो पुण भिण्णत्था। २. त० भा० १।१५।
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