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परिशिष्ट २
५. अव्यय - एक भी आत्म प्रदेश का जिसमें व्यय नहीं होता । ६. अवस्थित - अनन्त पर्यायों की अवस्थिति । '
घुवक ( ध्रुवक)
'ध्रुवक' का अर्थ है - ध्रुव, निष्प्रकंप, शाश्वत । इसमें शिव, गुत्त ( गोत्र ) भव, अभव ये पर्याय भी हैं। इनमें शिव मोक्ष का, गोत्र संयम का, भव आत्मा का और अभव सिद्धालय का वाचक है । ये सभी शाश्वत हैं, अत: इनका समावेश यहां कर लिया गया है ।
धूत (घूत)
'धुत' और 'धूत' - ये दोनों रूप प्रचलित हैं । 'धुत' साधना की विशेष पद्धति रही है । आचारांग के छठे अध्ययन का नाम 'घुत' है । बौद्ध परंम्परा में अनेक धुतांगों की चर्चा है ।
'घूत' का अर्थ है - वह प्रक्रिया जिससे कर्मों का धुनन किया जाता है । सूत्रकृतांग के चूर्णिकार ने 'धूत (धुत )' के अनेक अर्थ किए हैं—वैराग्य, चारित्र, उपशम, संयम, ज्ञान आदि । ये सारे अर्थ साधना से संबंधित हैं ।
यूतं (घूर्त)
घूर्त शब्द के पर्याय में ६ शब्दों का उल्लेख है । सभी शब्द धूर्त / शठ के विभिन्न प्रकारों के वाचक हैं—
१. धूर्त - जो हिंसा करके ठगता है ।
२.
नैकृतिक - माया करके ठगने वाला ।
३. स्तब्ध - आश्चर्य में डालकर धोखा देने वाला ।
४. लुब्ध - लोभ दिखाकर ठगने वाला |
५. कार्पटिक - साधु के वेश में ठग ।
६. शठ - वेश बदलकर लोगों को धोखा देने वाला ।
१. भटी प ११६ 1
२. सूचू १ पृ १६२ : धुअं वैराग्यं चारित्रं उपशमो वा संजमो णाणादि वा । ३. अचि ८८ धूर्वति हिनस्ति धूर्तः ।
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