Book Title: Ekarthak kosha
Author(s): Mahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 392
________________ परिशिष्ट २ 1 ३४५ स्त्रियों के बोधक हैं । ईश्वरी, स्वामिनी – ये शब्द स्त्री की आढ्यता के द्योतक हैं । इसी प्रकार इष्टा, कान्ता, प्रिया आदि उसकी प्रियता की ओर संकेत करते हैं । स्त्री स्वभावतः लज्जालु होती है अतः 'विलिका' भी उसका एक पर्याय है । 'मणामा' और 'पोहट्टी' इसी अर्थ में देशी है । म (पद्म) 'पदुम' के पर्याय के अन्तर्गत १७ शब्दों का उल्लेख है । सामान्यतः एकार्थक होते हुए भी इनमें जाति एवं वर्णगत भेद है । 'सप्फ', 'तणसोल्लिक', 'कोज्जक' आदि शब्द पद्म के लिए प्रयुक्त होने वाले देशी शब्द हैं । 'इंदीवर' नील कमल का और 'पाटल' रक्त कमल का द्योतक है । देखें – 'उप्पल' | परिगह (परिग्रह ) परिग्रह का अर्थ है -स्वीकरण । सैद्धान्तिक दृष्टि से परिग्रह का अर्थ है - मूर्च्छा, आसक्ति । लौकिक भाषा में परिग्रह से तात्पर्य है— पदार्थों का संचय | सूत्रकार ने इसके तीस नाम गिनाये हैं जिनमें परिग्रह, संचय, चय, उपचय, निधान, संभार, आकर, संकर, पिंड, संरक्षण आदि शब्द संग्रह और उपचय के वाचक हैं क्योंकि धन का ही संग्रहण, उपचय और संरक्षण किया जाता है । इस आधार पर इन सबको परिग्रह माना गया है । महेच्छा, प्रतिबंध, लोभात्मा, आसक्ति, अमुक्ति, तृष्णा, असंतोष आदि शब्द परिग्रह को पुष्ट करने वाली अथवा आदमी में परिग्रह बुद्धि उत्पन्न करने वाली वृत्तियां हैं, अतः कारण में कार्य के उपचार से ये शब्द परिग्रह के वाचक हैं । कुछ शब्द परिग्रह से उत्पन्न विषम स्थितियों के वाचक हैं, जैसे— परिग्रह कलह का भाजन होने से कलिकरंड कहलाता है । परिग्रही व्यक्ति हमेशा खेदखिन्न रहता है इसलिए परिग्रह का एक नाम आयास भी है । परिग्रह परिचय बढाता है अतः संस्तव, धन-धान्य का विस्तार करने से प्रविस्तार, तथा अत्यागभाव होने से परिग्रह को अवियोग भी कहते हैं । इस प्रकार ये तीस नाम परिग्रह, परिग्रह वृत्ति और परिग्रह परिणाम के द्योतक हैं । यवयण (प्रवचन) वस्तु में दो धर्म होते हैं—-सामान्य और विशेष । सामान्य अभेद का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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