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परिशिष्ट २ : ३५५
एकार्थक माना है। भवण (भवन)
आकार प्रकार में भेद होते हुए भी 'भवण' आदि चारों शब्द घर. के अर्थ में एकार्थक हैं । जैसे१. भवन–चतुःशाल आदि । २. गृह-सामान्य घर। ३. शरण-तृण आदि से बनी झोंपड़ी। ४. लयन-पर्वत को खोदकर बनाया गया घर अथवा पत्थर से निर्मित
घर ।
भिक्खु (भिक्षु)
“भिक्खु' शब्द के पर्याय में तेंतीस शब्दों का उल्लेख हुआ है। प्रवृत्ति लभ्य दृष्टि से सभी शब्द भिक्षु के पर्याय हैं लेकिन व्युत्पत्ति लभ्य (समभिरूढ नय की दृष्टि से सभी शब्द भिन्न-भिन्न अर्थ के वाचक हैं। कुछ शब्दों का तात्पर्य इस प्रकार है१. तीर्ण-संसार समुद्र को पार करने का इच्छुक । २. वायी-षड्जीवनिकाय का रक्षक । ३. द्रव्य-शुद्धचैतन्य स्वरूप । ४. मुनि--ज्ञानी। ५. प्रज्ञापक-धर्मदेशना देने वाला। ६. पाषण्डी--अनेक दर्शनों का ज्ञाता, पाप से पलायन करने वाला। ७ ब्राह्मण-ब्रह्मचर्य में रत । ८. श्रमण-श्रम करने वाला, सम रहने वाला तथा अच्छे मन वाला। ६. निर्ग्रन्थ-बाह्य और आभ्यन्तर ग्रंथि से मुक्त । १०. तपस्वी-तपस्या में रत। ११. क्षपक-कर्म-क्षय करने वाला। १२. भवान्त-संसार प्रवाह का अन्त करने वाला। १. आचू पृ २६ : भयं दुक्खं असातं मरणं असंति अणत्थाणमिति एगट्ठा।
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